Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 58
________________ दयापात्र बालक की दुर्दशा देखकर आप ही कहो, कि भोजन की रुचि कैसे हो सकती है ? - भोजन के समय आश्रम की संचालिका महिलाएँ छोटे-छोट बच्चों को प्रेम से भोजन करवाती है, फिर भी माँ की पूर्ति नहीं हो पाती। एक स्वयं की माता बालक को खिलाए और एक अन्य माता दूसरों के बालक को खिलाए-इन दो के बीच भिन्नता वहाँ देखने को मिलती है। तुम्हारे जन्म के पश्चात् तुम्हें खाने-पीने की कोई जानकारी नहीं थी, तब तुम्हारी माता ने कौर (कवल) बना बनाकर तुम्हारे मुख में प्रेम से रखे थे जिसके कारण ही तुम्हारे शरीर का गठन हुआ है। ऐसा सब कुछ होने पर भी हमको जन्म दिया तथा पालन पोषण करके हमें बडा किया, इसमें हमारी माँ ने क्या उपकार किया ? ऐसा कहने का साहस नहीं करना चाहिए। ये बातें पढने के पश्चात ऐसे शब्द मुँह में से कभी भी मत निकालना। ऐसी उपकारी माता का मन किसी प्रकार से दु:खी न हो एवं व्यथित न हो इस प्रकार उत्तम पुरुष को आचरण करना चाहिए। ____C. उपकार को भूलना नहीं बालकों ! तुम सभी भाग्यशाली हो, क्योंकि तुमने संस्कारी माता की कुक्षि से जन्म लिया है और जन्म के बाद तुम्हें कोई भी समझ नहीं थी, उस समय तुम्हारी माता ने ही पहला नवकार मंत्र तुम्हारे कान में सुनाया था, संसार के सर्वश्रेष्ठ मंत्र सुनाने वाली एवं सिखाने वाली तुम्हारी माता ही है । अरे ! तुमने ठीक से चलना भी नहीं सीखा था तब तुम्हारी ऊँगली पकडकर तुम्हें धीरे धीरे मंदिर में ले जाकर भगवान के दर्शन तुम्हारी माता ने ही करवाएं थे। उस माता और उसके उपकारों को कैसे भूल सकते हो ? अत: आप उनके सभी उपकारों को स्मरण करते रहना एवं उनके हृदय को कोई आघात न लगे, उन्का मन दुःखी न हो इसकी सदा सावधानी रखना। उसके लिए जो मौज शौक छोडने पडें तो छोडना। किसी वस्तु का त्याग करना पड़े तो त्याग कर देना। खाना या खेलना भूला जाना किंतु तुम्हें जन्म देने वाली माता के उपकारों को कभी मत भूलना। उनके ऋण में से मुक्त होने के लिए उनके सामने कभी मत बोलना। तुम्हारा आचरण भी उनको प्रसन्न रखे ऐसा रखना। बड़े होने पर एक से दो हो (विवाह करने पर) तब भी माता-पिता से अलग रहने का विचार मत करना क्योंकि पत्नी पसंदगी से मिलने वाली वस्तु है, जबकि माता-पिता पुण्य से मिलते है। पसंदगी से मिलने वाली वस्तु के लिए पुण्य से मिली हुई वस्तु को ठुकराना मत, वरना घर का नाम होता है मातृछाया, पितृछाया फिर भी माता-पिता को खडे रहने के लिए भी न मिले छाया। तुम पैसे वाले भी हो जाओ, वकील, डाक्टर इत्यादि बन जाओ, तब भी उनकी सेवा करने में सदा तत्पर रहना। ऐसे आचरण करने वाला पुत्र सुपुत्र कहलाने योग्य है। तथा ऐसे सुपुत्र माता-पिता की सभी इच्छाओं की पूर्ति अवश्य करते हैं। 56

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