Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 41
________________ 9. वहोराते समय सर्व प्रथम उत्तम द्रव्यों को बताना चाहिए फिर सामान्य द्रव्य बताने का विधान है। नहीं तो पहले समान्य चीज ले लें तो विशेष लाभ से वंचित रह जाते हैं, एवं जिसमें छींटे गिरने की संभावना हो वे पदार्थ अंत में वहोराने चाहिए, नहीं तो पहले ही छींटे गिर जाने से म.सा. डिना वहोरे जा सकते हैं। 10. कभी म.सा. पधारे हों और आपके घर रसोई नहीं बनी हो, तो दरवाजे से म.सा. को "रसोई नहीं बर्न है" इस प्रकार कहकर लौटाना नहीं चाहिए। अपितु उन्हें बहुमान पूर्वक आमंत्रण देकर, घी, गुड़, दूध, शक्कर, खाखरा, सुंठ, पीपरामूल आदि जो भी चीज घर में हो उसका लाभ देने की विनंती करना चाहिए। 11. जब भी म.सा. पधारते हैं, तब उनका भक्ति पूर्वक स्वागत एवं वहोराने के बाद समयानुसार पुनः लौटाने जाना चाहिए। कम से कम अपने घर के बाहर तक पहुंचाने तो जाना ही चाहिए। म.सा. गांव में अनजान हो तो उन्हें आस-पास के सभी घर दिखाने चाहिए। 12. म.सा. को वहोराने का आग्रह रखना उचित है, लेकिन इतना आग्रह भी नहीं करना चाहिए कि उनको तकलीफ उठानी पड़े। अतः विवेक रखें। 13. जब भी घर से गाड़ी लेकर निकल रहे हो, तब म.सा. को रास्ते में देखने पर अवश्य गाड़ी को रोककर उन्हें गोचरी, दवा आदि काम-काज के लिए पूछे। रास्ते में कोई भी तकलीफ आदि में भी आप सहायक बन सकते हैं। जरूरत पड़ने पर अपना काम गौण करके भी म.सा. का कोई काम हो तो करने से खूब लाभ मिलता है। 14. स्वयं खाने से पहले झरोखे या खिड़की से कोई साधु संत, साधर्मिक आदि का योग हो जाए ऐसी भावना पूर्वक देखना चाहिए। 15. प्रत्येक जैन को अपने फ्लेट के बाहरी दरवाजे पर बारसाख में परमात्मा की मंगल मूर्ति लगानी चाहिए। अगर मकान अपनी मालिकी का न हो तो भी जैनियों के प्रतिक रूप में जयजिनेन्द्र या भगवान, अष्टमंगल, नवकार मंत्र आदि का फोटो अवश्य लगाना चाहिए। ताकि म.सा. को मालूम पड़े कि यह जैन का घर है। प्रश्नः साधु भगवंत 'धर्मलाभ' बोलते हैं, इसका अर्थ क्या है? उत्तरः धर्मलाभ का अर्थ है कि सर्व विरति धर्म का लाभ (प्राप्ति) तुम्हें हो। अपने पास जो है उसकी प्रप्ति दूसरों को भी हो ऐसा आशीर्वाद पू. गुरु भगवंत देते हैं। क्योंकि देश विरति धर्म को धर्माधर्म कहा जाता है, क्योंकि इसमें धर्म का अंश है और धर्म से ज्यादा अधर्म है। इसलिए गृहस्थ सर्वविरति धर्म का आशीर्वाद चाहते हैं और साधु भगवंत देते हैं। -39

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