Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 48
________________ चत्वारो नरकद्वारा, प्रथमं रात्रिभोजनम् । परस्त्रीगमनं चैव, सन्धानानन्तकायिके। पद्मपुरण - प्रभासखंड जैनेतर ग्रंथों ने नरक के चार द्वार बताये हैं वे द्वार क्रमश : 1. पहला द्वार-रात्रिभोजन 2. दूसरा द्वार-परस्त्रीगमन 3. तीसरा द्वार-कैरी आदि का आचार, कडक अच्छी तरह तीन दिन धूप दिये बिना का (बोले आचार) 4. चौथा द्वार-अनंतकार का भक्षण है। मद्यमांसाशनं रात्रौ - भोजनं कंदभक्षणम्। ये कुर्वन्ति वृथास्तेषां, तीर्थयात्रा जपस्तपः ॥ - महाभारत (ऋषीश्वर भारत) कहा गया है कि, जो मनुष्य मदिरा - दारु, मांस, रात्रिभोजन और कंदमूल का भक्षण करते हैं, उनकी तीर्थयात्रा, जप-तप आदि अनुष्ठान निष्फल होते हैं। अस्तंगते दिवानाथे, आपो रुधिरमुच्यते। अन्नं मांससमं प्रोक्तं, मार्कण्डेनमहर्षिणा ।। -मार्कण्ड पुराण अर्थात् सूर्यास्त होने के पश्चात पानी पीना खून पीने के बराबर है और अन्न खाना नास खाने के बराबर है। यह मार्कण्डेय ऋषि ने बताया है। मृते स्वजन मात्रेऽपि, सूतकं जायते किल । अस्तंगते दिवानाथे, भोजनं किमु क्रियते॥ अर्थात् जिस तरह स्वजन और संबंधियों की मृत्यु होने पर भोजन किस तरह कर सकते हैं। यानि कि सूर्यास्त होने के बाद रात्रिभोजन कदापि नहीं करने योग्य है। (यहाँ पर याद रखने की बात यह है कि, यह विधान हिन्दुओं के ग्रंथों का है। सर्वज्ञों द्वारा कथित जैन धर्म का नहीं।) मद्यमांसाशनं रात्रौ - भोजनं कंदभक्षणम् । भक्षणात् नरकं याति, वर्जनात् स्वर्गमाप्नुता। अर्थात् जो मनुष्य मदिरा, मांस, रात्रिभोजन और कंदमूल का भक्षण करते हैं वे नरक गति में जाते हैं और जो मनुष्य मदिरा, मांस, रात्रिभोजन, कंदमूल भक्षण का त्याग करते हैं वे स्वर्ग में जाते हैं। रात को कौन खाता है ? देवैस्तु भुक्तं पूर्वाह्ने, मध्याह्ने ऋषिभिस्तथा। अपराह्न तु पितृभि, सायाह्ने दैत्यदानवैः ।। 46

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