Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 42
________________ 8. दिनचर्या A. रात्रि शयन विधि सोते समय ऐसा विचार करके सोएँ कि मुझे प्रात: समय पर उठना ही है। क्योंकि इस प्रकार संकल्प करके सोते हैं, तो लगभग जिस समय उठना हो, उसी समय उठ ही जाते है। स ते समय निम्न प्रकार से बोलें * सोना नु कोडीयुं रुपा नी वाट, आदीश्वर दादा नु नाम लेता, सुखे जाए रात। नवकार तुं मारो भाई, तारे मारे घणी सगाई अंत समय याद आवशोजी, मारी भावना शुद्ध राखजो जी।। * काने मारे कुंथुनाथ, आंखे मारे अरनाथ, नाके मारे नेमिनाथ, मुखे मारे मल्लीनाथ, सहाय करे शांतिनाथ, परचो पूरे पार्श्वनाथ ।। ज्ञान मारा ओशीके, शीयल मारे संथारे, भरनिद्रा मां काल करूँ, तो वोसिरे वोसिरे वोसिरे।।। * अरिहंत नो कुकडो, झेरी जंतु न आवे ढूंकडो, अरिहंतनी कुकडी, मुक्ति मले ढूंकडी, अरिंहत नो घोडो, कीधा कर्म छोडो।। ये गाथाएँ बोलने के बाद सात भय के निवारणार्थ सात नवकार मंत्र हाथ जोडकर गिनें। जैनेतर ग्रंथों में भी उल्लेख हैं, कि सोते समय वेद मंत्रों का पाठ करें और ईश्वर के पास अपने कल्याण की प्रार्थना करके सोना चाहिए। सोते समय अपना मस्तक दक्षिण या पूर्व दिशा की ओर रखें। दक्षिण या पूर्व दिशा में पाँव न रखें, क्योंकि दक्षिण दिशा में यम का निवास कहा जाता है और व्यक्ति के मस्तक में एक शक्ति ( मेग्नेट) है, जो शिखा वाले भाग में रही हुई है। उत्तर दिशा में मस्तक रखने से उस शक्ति की गति की सं व्या (स्पीड) नित्य की अपेक्षा बढ़ जाती है जिससे अलग-अलग प्रकार के विकार उत्पन्न होते है, और हमारे शरीर को हानि पहुँचती है। रात्रि में जगना और दिन में सोना नीति शास्त्र के विरूद्ध है। रात्रि शयन में अल्प निद्रा करें, क्योंकि अपने आगम शास्त्रों में उल्लेख आता है कि जो अल्प आहारी होते है, जो अल्प नींद लेते है और जो अल्प हिंसा व अल्प परिग्रह वाले होते हैं, ज अल्प क्रोध 40

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