Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

Previous | Next

Page 25
________________ सूत्रों में पाठ बढाकर न बोलें:- सूत्र जितना लिखा हुआ हो, उतना ही बोलें। दो बार (डबल) भी न बोलें एवं अधिकस्य अधिकम् फलम् मानकर कायोत्सर्ग करते समय नवकार या लोगस्स अधिक न गिनें। जिस प्रकार डॉक्टर की दवा का डोझ जितना लेने का निर्देश हो उतना ही लिया जाता है, अधिक या कम नहीं ले सकते, जैसे पापड या रोटी अधिक नही सेके जाते, यदि अधिक सिकने दें, तो उसका क्या फल निकलता है, इस बात से आप परिचित है। इसी प्रकार सूत्रों के पठन-पाठन में शब्द या मात्रा आदि अधिक न बोलें। कुछ लोग नवकार मंत्र को सूत्र रूप में बोलते वक्त नमो सिद्धाणं पद में सव्व शब्द जोडकर नमो सव्व सिद्धाणं बोलते है, वह सव्व शब्द अधिक नहीं बोलना चाहिये- ऐसा बोलने से महादोष लगता है। परन्तु गीत रूप में या काव्य रूप में बोल सकते है। दृष्टांत: वृद्धि करने पर एक लौकिक कथा निम्न प्रकार से है:- सूत्र में हो उससे अधिक अक्षर बोलने से कैसा अनर्थ होता है-यह समझने के लिये वह लौकिक कथा जानने योग्य है। यह कथा कदाचित् काल्पनिक भी हो सकती है, परंतु हमें जो समझना है, उसे समझने में उपयोगी है: बंदर और बंदरी की चमत्कारिक कथा एक था सरोवर। उसका जल चमत्कारी होने से कामिक तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध था। इस सरोवर कि तट पर वंजुल व पति-पत्नी देव नाम एक वृक्ष था। इस वृक्ष पर चढकर यदि कोई पशु-पक्षी सरोवर में गिरते तो वे उसमें गिरते ही मानव बन जाते थे। ऐसी इस वृक्ष और सरोवर में विशेषता थी। इसका एक प्रतिकूल प्रभाव भी था कि मनुष्य में से देव बना हुआ व्यक्ति यदि दूसरी बार सरोवर में गिर पडता था, तो वह पुन: मनुष्य बन जाता था और पशु-पक्षी में से मनुष्य बना हुआ यदि दूसरी बार सरोवर में गिरने का लोभ करता था, तो वह मनुष्य पुन: पशु-पक्षी की ही काया प्राप्त कर लेता था। तीसरी बार गिर पड़ने वाले के लिये इसका कुछ भी प्रभाव न था। ऐसे चमत्कारी इस सरोवर के किनारे पर एक बार एक पति-पत्नी आए और देव बनने की इच्छा से वे उस वृक्ष के ऊपर चढे और सरोवर में कूद पडे। दूसरी क्षण वे देव-देवी बनकर बाहर आए। उनकी देदीप्यमान काया में से चारों ओर प्रकाश फैलने लगा। निकटवर्ती वृक्ष पर बैठे हुए बंदर-बंदरी ने यह दृश्य देखा, अत: उनके मन में भी सरोवर में गिरकर नवीन अवतार प्राप्त करने का लोभ पैदा हुआ। देखते ही देखते छलाँग मारकर वंजुल के वृक्ष पर 23

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132