Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06 Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai Publisher: Vardhaman Jain Mandal ChennaiPage 32
________________ ___ गजसुकुमालमुनि, खंधकमुनि आदि की आत्माओं ने चार घाती कर्मों का क्षय कर केवलज्ञान प्राप्त कर तुरंत ही आयुष्य पूर्ण करके बाकी के चार अघाती कर्म भी क्षय करके तुरंत मोक्ष में गये थे। उन्हें अंतकृत केवली कहते है। प्र : सिद्ध भगवंतों को मोक्ष में सुख मिलता है या नहीं ? उ : मोक्ष में तो हमेशा के लिए सुख-सुख और सुख ही होता है। वह सुख हमारे संसार सुख जैसा नहीं होता बल्कि उससे अनंत गुणा अच्छा सुख होता है। संसार के सुख को सुख कैसे कहा जा सकता है? संसार के जो भी सुख होते है वे विनाशी सुख होते है। वे स्थायी नहीं होते, और तो और, दुःखों को लाने वाले होते है। वे सामग्री पर निर्भर होते है। जो सुख सदा के लिए न टिकने वाले हो और एक दिन जिसका विनाश होने वाला हो, ऐसे सुख प्राप्त करने में क्यों हम इतने पाप करें ? वास्तव में तो कायम के लिए टिकने वाला, दुःखों की परंपरा को अटकाने वाला, स्वाधीन और पूर्ण सुख प्राप्त करने में ही बुद्धिमता है, और ऐसा सुख तो मात्र मोक्ष में ही है। अतः हमें भी शाश्वत, स्वाधीन और संपूर्ण सुख प्राप्त करने के लिए सिद्ध भगवंत बनने का पुरुषार्थ करना चाहिए। सिद्ध भगवंत स्वयं अविनाशी है और उनका सुख भी अविनाशी है। इस तरह सिद्ध भगवंतों का विशिष्ट गुण है - अविनाशी प्र : हमारे जिनालयों में अरिहंत भगवंत होते है या सिद्ध भगवंत ? उ : हमारे जिनालयों में अरिहंत और सिद्ध दोनों की ही प्रतिमाएँ हो सकती है। अष्ट प्रातिहार्य युक्त महावीर स्वामी भगवान की प्रतिमा हो तो वह अरिहंत भगवान कहलाते है। अष्ट प्रातिहार्य के बिना सिद्धावस्था को बताने वाली प्रतिमा मोक्ष में पहुँच चुके महावीर स्वामी भगवान को दर्शाती है। हमारे मंदिर के शिखर पर अरिहंत और सिद्ध भगवंत को सूचित करने वाली लाल-सफेद ध्वजा होती है। मंदिर में यदि मूलनायक भगवान अरिहंत हो तो बीच में सफेद और आजु बाजु लाल रंग की पट्टी होती है। और यदि मंदिर में मूलनायक सिद्ध अवस्था में हो तो ध्वजा की बीच की पट्टी लाल रंग की और आजु-बाजु सफेद रंग की होती है। अरिहंत और सिद्ध के अलावा और कोई परमात्मा नहीं होते। इसलिए मंदिरों पर भी लाल और सफेद रंग के अलावा अन्य रंगों की ध्वजा नहीं होती। प्र : अरिहंत और सिद्ध के अलावा यदि और कोई परमात्मा नहीं है तो आचार्य भगवंतों को भी नमस्कार क्यों करते है ? उ : जो स्वयं अरिहंत परमात्मा के उपदेश के अनुसार पालन करते है और दूसरों से करवाते है इसलिए आचार्य भगवंतों को नमस्कार किया जाता है। वे भगवान तो नहीं है लेकिन भगवान बनने के लिए सतत साधना रत है। भगवान की अनुपस्थिति में वे जिनशासन का संचालन करते है। परमात्मा के उपदेश को विश्व के जीवों को बताकर उन्हें सच्चे मार्ग पर ले जाते है। अनेक जीवों को इस संसार के प्रति वैरागी बनाकर साधूजीवन तक पहुँचाते है। अनेक शास्त्रों का अभ्यास कर वे प्रकांड पंडित बनते है। वे 36 गुणों के स्वामी होते है। 30Page Navigation
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