Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ होता है। उपाध्याय भगवंत के मन में साधु के कल्याण की ही भावना होती है। इसलिए उपाध्याय भगवंतों को साधओं की सच्ची माता (भाव माता) की उपमा दी गई है। गर्मी के दिनों में दोपहर की चिलचिलाती धूप में प्यासा, थका हुआ और गर्मी से त्रस्त व्यक्ति जिस तरह वट वृक्ष की शीतल छाया मिलने से राहत का अनुभव करता है उसी तरह दोषों से त्रस्त साधु भगवंत उपाध्याय भगवंत रुपी वट वृक्ष की छाया प्राप्त कर राहत का अनुभव करते है। इसलिए उनका वर्ण भी वट वृक्ष की तरह हरा होता है। गुण कितने होते है ? किस प्रकार से ? प्रश्न: उपाध्याय भगवंत के उत्तरः उपाध्याय भगवंतों के 25 गुण प्रचलित है । गणधर भगवंत द्वारा रचित द्वादशांगी में से 11 अंग विद्यमान है। तथा बारह अंग से संबंधित 12 उपांग भी वर्तमान में विद्यमान है। 11 अंग + 12 उपांग 23 शास्त्र का वे अध्ययन करते है और कराते है इन 23 गुणों में वे चरणसित्तरी (24) और करणसित्तरी (25) का पालन करते है। इस तरह उपाध्याय भगवंत के 25 गुण होते है। प्रश्नः उपाध्याय भगवंतों का विशिष्ट गुण कौन सा है ? उत्तर: उपाध्याय भगवंत स्वयं उत्तम प्रकार के विनय गुण के भंडार होते है। और साधुओं के भी विनय गुण से युक्त बनाते है। इसलिए उपाध्याय भगवंत का विशिष्ट गुण है विनय । प्रश्नः साधु भगवंतों को नमस्कार क्यों करना चाहिए ? उत्तरः साधु भगवंत संसार के सभी सुखों का त्याग करके संयम स्वीकारते है। माता-पिता स्वजनों के प्रति मोह का भी वे त्याग करते है । वे कभी कंचन या कामिनी का स्पर्श नहीं करते। नंगे पैर चलकर वे गाँव गाँव विहार करते है। हर छ: महीने में बालों का लोच कराते है। आत्मा पर रहे हुए कर्मों और दोषों का निवारण करने के लिए परमात्मा की आज्ञानुसार वे सतत् साधना में लीन रहते है। उत्तमप्रकार के ब्रह्मचर्य का पालन करते है। ऐसे त्यागी, वैरागी, संयमी, साधु भगवंत को नमस्कार करने की इच्छा किसे नहीं होगी ? जो सहन करे वह साधु। साधु भगवंत पृथ्वी के समान सहन करते है। कष्ट, तकलीफें, प्रतिकूलताओं को वे हँसते हँसते सहन करते है। अरे! वे तो सामने से कष्टों को आमंत्रित करते है। समग्र जीवन के दौरान वे अरिहंत परमात्मा की आज्ञा अपने मस्तक पर धारण करते है। सभी पापस्थानों से दूर रहते है। भूल से भी कोई पाप हो जाएं तो सच्चे हृदय से उसका प्रायश्चित लेते है। वे मोक्ष पाने की तीव्र इच्छा वाले होते है। इस विश्व में ऊँचे से ऊँचा सदाचार याने पाँच महाव्रतों का वे सतत् पालन करते है। जो सहायता करे वह साधु। अपने साथ में रहे हुए सभी साधुओं की सहायता के लिए वे तत्पर रहते 32

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132