Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06 Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai Publisher: Vardhaman Jain Mandal ChennaiPage 26
________________ पहुँच गए और दूसरी एक छलाँग लगाकर सरोवर में पडे। विद्युत वेग से बंदर और बंदरी मनोहर मानव देह प्राप्त कर ऊपर उठ आए। बंदर को नर का और बंदरी को नारी का देह मिला। दोनों ही अपार हर्षित थे। __कहावत है कि लाभ से लोभ बढता है। पशु देव में से मानव देह का लाभ होते ही उस वानर पुरुष का लोभ बढा। अब उसे मानव में से देव बनने की इच्छा हुई, अत: उसने अपनी पत्नी को कहा चल ! अभी एक बार और सरोवर में कूद पडे और मानव में से देव बन जाएं। पति की बात सुनकर पत्नी ने कहा: लोभ पाप का बाप है, लोभ की सीमा नहीं होती । लोभ से मानव का सर्वनाश हो जाता है। अत: हम पशु में से मानव बने यही बहुत है। अब अधिक लोभ करने से बचो। अधिक लोभ में फँसे तो यह मानव देह जो प्राप्त हुआ है उसे भी खो देंगे। परंतु सयानी पत्नी की यह हित शिक्षा लोभांध पति ने अनसुनी कर दी। लोभ ही लोभ में उसने तो वृक्ष पर से पुन: सरोवर में छलाँग मार दी। पत्नी देखती ही रही और उसका पति पुन: बंदर बनकर उछल कूद करने लगा। बंदर के पश्चाताप की अब सीमा न रही, परंतु अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत ? It is Useless to cry over Spilt Milk. ___ बंदरी - स्त्री का भाग्य प्रबल था। वह मानव देह खो बैठे अपने पति की दुर्दशा पर आँसू बहा रही थी। इतने में ही एक राजा वहाँ आ पहुँचा। वह उस स्त्री के रूप में मुग्ध हो गया। उसने दयार्द्र बन्दरी-खी को राजा ले गया और बंदर को मदारी ले गया.. हृदय से उसके आँसू पौंछे। स्नेहपूर्वक उसे अपने साथ ले जाकर अपनी पट्टरानी बना दी। कुछ दिनों के पश्चात् उस जंगल में एक मदारी आया। उसे वह लोभी बंदर बहुत ही पसंद आ गया। मदारियों को तो बंदर पकडना भी आता है और उनसे क्रीडा-खेल करवाना भी आता है। मदारी ने बंदर को पकड लिया और भाँति-भाँति के खेल भी सिखा दिये। मदारी के बंदर की तरह वह। तरह तरह के खेल खेलकर लोगों का मन हरने लगा। भाग्य योग से यह मदारी एक दिन उसी राजा की सभा में जा पहुँचा। बंदरी में से मानव बनी हुई रानी की दृष्टि उस बंदर पर पडी और उसने उसे अपने पति के रूप में पहचान लिया। बंदर की भी ऐसी ही स्थिति बदर को मदारी राज सभा में ले गया और रानी डर गई। 24Page Navigation
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