Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
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प्रथम अध्याय।
सूचना-व्यञ्जनों के साथ यह बारह स्वरों का मेल दिखलाया गया है, इसमें ऋ, ऋ, ल, लये ४ स्वर छोड़ दिये हैं, क्यों कि इन स्वरों के साथ म्यञ्जन मिले हुए अक्षर प्रायः संस्कृत के शब्दों में देखे जाते हैं, भाषामें इन का उपयोग बहुत ही कम भाता है, किन्तु ल, ल, का संयोग तो संस्कृत के शब्दों में भी बहुत ही कम देखा जाता है, हां आवश्यकता होने पर यथायोग्य इन स्वरों का भी मेल कर लेना चाहिये, इन में से क की मात्रा , यह है, ऋकी मात्रा , यह है, ल की मात्रा . यह है तथा ल की मात्रा .. यह है अर्थात् इन स्वरूपों से ये चारों स्वर व्यञ्जनों में मिलते हैं । जैसे कु+ऋ-कृ।
ऋ-कृ । क्ल-क्ल । कल-कु इत्यादि ॥
सूचना दूसरी-उपर लिखे स्वरूप में जिस प्रकार से बारह स्वरों के साथ ककार का संयोग दिखलाया गया है, उसी प्रकार से उक्त बारह स्वरों का संयोग खकार आदि सब वर्गों के साथ समझ लेना चाहिये ॥
. दो अक्षरोंके शब्द । कर । भर । अब । तब । जब । कब । हम । तुम । वह । माता । पिता। दादा । दादी । भाई । नानी । नाना । मामा । मामी। करो। चलो । बैठो। जाओ । खाओ। सोओ। कहो। देवी। नदी। राजा। रानी। वहू । बेटी । सोना । चांदी । मोती । आलू । सीठी । बेटा । सखी । आदि ॥
तीन अक्षरोंके शब्द । केवल । पाठक । पुस्तक । अन्दर । संवत् । पण्डित । कमल । गुलाब । मनार । चमेली। मालती। सेवती। छुहारा । चिरोंजी। बादाम । सेवक । नौकर । टहल । बगीचा । आराम । नगर । शहर । इत्यादि । ... .... ..
. चार अक्षरोंके शब्द । यत्रालय । उपवन । विद्यालय । कालचक्र । भद्दापन । सरस्वती। कटहल । बड़हर । जमघट । भीडभाड़ । खुशदिल । मोटापन । तन्दुरुस्ती । अकस्मात् । दैवाधीन । प्रजापति । परमेश्वर । आदि ॥
छोटे २ वाक्य। यह लो । अब जाओ। अभी पढ़ो। रोओ मत । सबेरे उठो । विद्या सीखो। जल भरो। गाली मत दो। मत खेलो। कलम लाओ। पत्र लिखो। घर जाओ। सीधे बैठो। दौड़ो मत। यह देखो। बाहर जाओ। घरमें रहो । धर्म करो। ज्ञान कमाओ । इत्यादि ।
कुछ बड़े वाक्य। अब घर जाओ। तुम क्यों हँसे । झूठ मत बोलो। सबेरे जल्दी उठो। पढ़ना अच्छा है। तब मत पढ़ना। तुम ने क्या कहा। माता से पूछो। पिता
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