Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
View full book text
________________
जैनसम्प्रदायशिक्षा । इस प्रकार वर्णमाला में कुल ५२ अक्षर हैं-परन्तु पिछले ३ वर्ण (क्ष, त्र और ज्ञ) वास्तव में वर्ण नहीं हैं, किन्तु ये तीनों संयुक्ताक्षर हैं, क्योंकि कु और ष के संयोग से क्ष, त् और र के संयोग से त्र और ज तथा ज के संयोग से ज्ञ बनता है, इसलिये मुख्यतया वर्णमालामें ४९ ही अक्षर हैं अर्थात् १६ स्वर और ३३ व्यञ्जन ॥
संयुक्ताक्षरों(संयोगी अक्षरों)का वर्णन । स्+त-स्त । द्य-छ। र+वर्व । व्+यव्य । स्+क-स्क । ग+र-प्र । न+त-न्त । क+र-क्र । प्+रप्र। र+ण-र्ण । श्+र-श्र । र+थर्थ । त्+स-त्स । द्+ध-द्ध । +घर्घ । दु+द-६ । दु+व-द्व । म्+ब-ग्ब । श्+वश्व । ष्ण=ष्ण । म्+म-म्म । न+द-न्द । त्+व-त्व । चन्छ-च्छ । क+य-क्य । +8-ष्ठ । श+यश्य । त्+त-त्त । ब+द-ब्द । क्+त-क्त। भू+य-भ्य। त्+प-त्प। लू+दल्द । +म-क्म । न++र-न्द्र । स्+त+र-स्त्र। र++स-सं । र+ध+व र्ध्व ॥ अक्षरों के संयोग में नीचे लिखी हुई बातों को याद रखनाः
१--रेफ जब किसी अगले वर्ण से मिलता है तब उसके ऊपर चढ़ जाता है। . जैसे र+कर्क इत्यादि, परन्तु जब रेफ से कोई वर्ण मिलाया जाता है तब रेफ उसके नीचे जोड़ा जाता है। जैसे कु+र-क्र इत्यादि ।
२-प्रायः सब वर्ण अगले वर्ण के साथ अपने आधे स्वरूपसे मिलते हैं, जैसा कि उक्त संयोगी अक्षरों में दिखलाया गया है, परन्तु ङ, छ, झ, ट, ठ, ड, ढ, द, फ, ह, ये वर्ण प्रायः अपने पूरे स्वरूप के साथ अगले वर्षों से मिलते हैं, जैसे
+क-ङ्क। गङ्ग। छ+य-छय । छान-छ । झू+य-श्य । झ्+च-इच । ट्+टहै। ट्+क-क। ट्+य-ट्य । ठ+यव्य । द+क-ठू । इ+य-ड्य । इ+क-ङ्क । द+य-ब्य । द+क-टू । द्+य-ध। +क-दू। द्+ध-द्ध । दु+म- । फायफ्य । फाल-लाह य-छ । ह्+म-हा। हाल-ह। इत्यादि ।।
३-कोई कोई वर्ण अन्यके साथ मिलनेसे बिलकुल रूपान्तरमें पलट जाते हैं। जैसे श+र-श्र। त्+र-त्र। ज्+न-ज्ञ। क्+ष-क्ष। क्+त-क्त । त्+त-त्त । इत्यादि ।
बारह अक्षरीका वर्णन । जब व्यञ्जन वर्ण किसी अगले स्वर वर्ण के साथ जोड़े जाते हैं तो वे स्वर मात्रारूप में होकर व्यञ्जन के साथ मिलते हैं, इसी को हिन्दी भाषा में बारहखड़ी कहते हैं । इसका स्वरूप यह है:
बारह अक्षरीका खरूप । १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ ।
अ
आ इ
ई
उ ऊ ए ऐ
ओ
क का कि की कु कू के कै को कौ
कं
कः
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com