Book Title: Jain Rajnaitik Chintan Dhara
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Arunkumar Shastri

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Page 8
________________ के काव्यों में प्रतिबिम्बित राजा के गुण 60, आदिपुराण में प्रतिबिम्बित राजा के गुण 61, उत्तरपुराण में प्रतिबिम्बित राजा के गुण 61, चन्द्रप्रभचरित में प्रतिबिम्बित राजा के गुण 62, वर्धमानचरित में प्रतिबिम्बित राजा के गुण 63, नीतिवाक्यामृत में प्रतिबिम्बित राजा के गुण64, राजा के प्रमुख गुण 64, अरिषड्वर्गविजय 64, रागासक्त जनों में योग्य 65, त्रिवर्ग का अविशेष रूप से सेवन 66, मध्यवृत्ति का आश्रय 67, कार्य को स्वयं निश्चित करना 67. शान्ति और प्रताप 67, शत्रुओं का विजेता होना 67, प्रजापालन 67 वीरता 68. जागृति 68, नियमपूर्वक कार्य करना 68, विद्वत्ता यथापराध दण्ड 69, न्यायपरायणता 70, सत्संगति 70, दान देना 70, प्रत्युपकार 70, समयानुसार कार्य करना 70 जितेन्द्रियता 70, गोपनीयता 70, अनीतिपूर्ण आचरण का परित्याग 71, धार्मिकता 77, राजा के दोष 71, मूर्खता 72, दृष्टता 73, दुराचार 73, चंचलचित्तपना 73, स्वतन्त्रता 73, आलस्य 73, अपनी शक्ति को न जानना 73, अधार्मिकता 73, बलात्कारपूर्वक प्रजा से धनग्रहण 73, यथापराध दण्ड़ न देना 73, शूद्र अधिकारी रचना 73, स्वेच्छाचारिता 73, ब्रह्मघात 73, पंचम अध्याय राजकुमार राजकुमार 83, राजकुमारों को दी जाने वाली शिक्षा 85 इस प्रकार परगतिविरोधिनी 88 पृष्ठ अध्याय - मन्त्रिपरिषद् और अन्य अधिकारी मन्त्रिपरिषद् का महत्त्व 92, मन्त्रियों की संख्या 93, मन्त्रियों की योग्यता 94. मन्त्रियों की योग्यता की परीक्षा 94, धर्मोपधा 94, अर्थोपधा 95 कामोपघा 95, भयोपश्रा 95, मन्त्रियों की नियुक्ति 95, मन्त्रियों के अर्थ 96, राजा और मन्त्री का पारस्परिक व्यवहार 97, अमात्य और उनका महत्त्व 97, अमात्यों का अधिकार क्षेत्र 98, अमात्य के दोष 98, अमात्य होने के अयोग्य पुरुष 98, मन्त्रियों के दोष राजा की इच्छा के अनुसार अकार्य की कार्य के रूप में शिक्षा देना 98, व्यसनता 99, युद्धोद्योग अथवा भूमित्याग का उपदेश देना 99 हितोपाय तथा अहित प्रतीकार न करना 99, अकुलीनता 99, स्वेच्छाचारिता 99, व्यावहारिकता का अभाव 99 मूर्खता 99, विषमता 99 शस्त्रोपजीविता 99, मन्त्राणा और उसका माहात्य 99, मन्वणी करते समय ध्यान देने योग्य बातें 100, मन्त्रणा करने का स्थान 100, मन्त्रणा के अयोग्य व्यक्ति 101, मन्त्रभेद से हानि 101, मन्त्रभेद के कारण 101, मन्त्रणा की सुरक्षा और उसका प्रयोग 101 पञ्चांग मन्त्र 101, कार्य आरम्भ करने का उपाय 101, पुरुष तथा द्रव्य सम्पत्ति 107, देश और काल 101, विघ्नप्रतीकार 101, कार्यसिद्धि 102, उच्चपदाधिकारी अठारह श्रेणियों के प्रधान 102, मन्त्री 102, पुरोहित 102, सेनापति 103, सेनापति के गुण 103, सेनापति के दोष 103, सेनापति का कार्य युवराज 103, दौवारिक 104, अन्तर्वेशिक 104, प्रशास्ता 104, समाहर्ता 104, आकराध्यक्ष 104, पण्याध्यक्ष 104, कुप्याध्यक्ष 105 आयुषागाराध्यक्ष 105 यौवसाध्यक्ष 105, मानाध्यक्ष 105 शुल्काध्यक्ष 105, सूत्राध्यक्ष 105, सोताध्यक्ष 105, सुराध्यक्ष 105, सूनाध्यक्ष 105, गणिकाध्यक्ष 105, नावध्यक्ष 105, गोऽध्यक्ष 105, अश्वाध्यक्ष 105, हस्त्यध्यक्ष 105, रथाध्यक्ष 105, मुद्राध्यक्ष 105, विवीताध्यक्ष 105 लक्षणाध्यक्ष 105, -

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