Book Title: Jain Rajnaitik Chintan Dhara Author(s): Rameshchandra Jain Publisher: Arunkumar Shastri View full book textPage 6
________________ दी शब्द भारतीय राजनीति के विभिन्न पहलुओं पर प्राच्य और पाश्चात्य विद्वानों ने काफी शोध और खोज की है तथा इसके विषय में अनेक ग्रन्थों का प्रणयन हुआ है। अन्य भारतीय आचार्यों की तरह जैन आचार्यों ने भी राजनैतिक विषयों पर गहन मन्थन किया है, किन्तु इस ओर विद्वानों की दृष्टि नहीं गई है यही कारण है कि जैन राजनीति पर अभी तक अत्यल्प सामग्री प्रकाश में आई है एवं राजनीतिप्रधान ग्रन्थों में जैन सन्दर्भों का नितान्त अभाव है। इसी अभाव की पूर्ति हेतु हमारा ध्यान इस ओर गया । प्रस्तुत शोध प्रबन्ध जैन राजनैतिक चिन्तनधारा (सातर्जी से दशवीं शताब्दी) इसी दिशा में किया गया आंशिक प्रयत्न है। इस प्रयत्न की सफलता का पूरा श्रेय उन प्राचीन महनीय महर्षियों को है, जिनके विचारों को ग्रहण कर इस प्रबन्ध को सजाया और संवारा गया है। तथा दार्शनिक संत परम पूज्य श्रद्धेय गुरुवर श्री सुधासागरजी महाराज की पावन प्रेरणा एवं मंगलकारी आर्शीवाद से यह कृति चर्मोत्कर्षता प्राप्त करकें पाठकों के हाथ में पहुँच रही हैं। इनके पकरणों में फोटो करती हूँ। आगरा कॉलेज आगरा के राजनीति विभाग के अध्यक्ष डॉ. वी. एम. टोंक की मैं हृदय से बहुत आभारी हूँ, जिनके कुशल निर्देशन में यह शोध कार्य सम्पत्र हो सका। डॉ. राजकुमार जैन (तत्कालीन अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, आगरा कॉलेज, आगरा), ड्रॉ कुन्दनलाल जैन (तत्कालीन अध्यक्ष हिन्दी विभाग, बरेली कॉलेजबरेली) तथा अन्य अनेक महानुभावों से समय-समय पर मुझे उपयोगी परामर्श मिले । सहायक पुस्तकों के रूप में अनेक प्राचीन आचार्यों एवं आधुनिक विद्वानों की कृतियों का उपयोग इस ग्रन्थ में किया गया है। इन सबके प्रति में हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ। आगरा विश्वविद्यालय से यह शोध प्रबन्ध 'सातवी से दशवीं शताब्दी तक के जैन साहित्य में राजनीति ' शीर्षक से पी-एच. डी. हेतु स्वीकार किया गया था, अब इसका शीर्षक परिवर्तित कर 'जैन राजनैतिक चिन्तन धारा (सातवीं से दशवीं शताब्दी) ' के रूप में प्रकाशित कराया जा रहा है। आशा है इससे राजनीति शास्त्र के अध्येताओं को लाभ होगा। इस ग्रन्थ का प्रकाशन दिगम्बर जैन समिति, अजमेर के सहयोग से आचार्य ज्ञानसागर वागर्थ विमर्श केन्द्र, ब्यावर से किया जा रहा है, अत: इस केन्द्र के प्रति कृतज्ञयता ज्ञापित करती हूँ। तथा ग्रन्थ प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करने वाले को अनेकश धन्यवाद ! ........... विजयलक्ष्मी जैनPage Navigation
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