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श्री जैन नाटकीय रामायण ।
यहां गेंद नहीं भाई । अगर पाती भी है तो उड़न छु होजाती है। इस लिये धब कभी भी यहाँ गेंद लेने न आना । इस लिये पिताजी यहाँ पर खेलकर कौन अपना नुकसान करे ।
पिताजी-(आश्चर्य से ) कौन कल्लू ! राजमल-वही काला कल्लू जो बैलोंको भुस खिलाता है।
पिताजी-अच्छी बात है। मैं अभी जाकर उसे अपने घर से निकालता हूँ।
(चला जाता है, राजमल रह जाता है। राजमल-हाजी अब तो गेंद श्रायगी । बहू-( आकर ) प्राणनाथ ! ।
राजमल-जाजा, फिर गेंद का नाम सुनकर उडन छू करने आगई।
बहू-नहीं मैं गेंद उडन छू नहीं करूँगी। मैं तुमसे प्यार करूँगी।
राजमल-अच्छा प्यार करेगी तो पहले मुझे गोदी चढाले । ।
बहू-अब तुम बडे हो गये । अब मैं गोदी नहीं चढाती,
राजमल-बडा मैं ही थोडे ही हो गया तू भी तो हो गई। और तेरे तो अब छोरा होगा, मुझे खित्ताने को दिया करेगी?