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'द्वितीय भाग
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बाबूजी-हमारा भाग्य बहुत बुरा है। हमारी वाइफ हमें बुढ़ापे में रंडुअा कर के चल बसी । अहा, उसकी पाणी कितनी मधुर थी। मुझे कितना प्यार करती थी ? यह मैं ही जानता हूं। महीने भर मर पच कर जब मैं अपनी तनख्वाह के १६०) खाकर उसे देता था तो एक हो मुस्कान से मेरी महीने भर की थकावट दूर कर देती थी। हाय अब वह सुख कहां ? वह मुस्कान कहां? वह आनन्द कहां?
एक क्लर्क-( आकर ) कहिये बाबूजी कौनसे आनन्द को याद कर रहे हैं ?
बाबूजी-भाई कौनसे क्या, जब मैं बच्चा भा । तो मेरी मां मुझे गोदी में विठाती थी। अपने हाथ से खिलाती थी। मुझे अपने कलेजे से चिपटाती थी। ( सांस भरकर ) भाई उसी श्रानन्द को याद कर रहा हूं। बेचारी वह तो मर गई अब हमें रोना पड़ रहा है।
क्लर्क-बाबूजी मुझे तो श्रापके कहने में कुछ झूठ मालूम पड़ रहा है।
बाबूजी-झूठ ही सही माई तुम जो चाहे समझलो । मेरा दुख तो मैं ही जानता हूं।
कलर्क-जब तक आपकी श्रीमती जी रही............ बाबूजी-(मुंह बना कर ) भाई मेरी उसका नाम मत