Book Title: Jain Natakiya Ramayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 270
________________ जम्बूस्वामी चरित्र नेको उद्यमी हुमा । इतनेमें जम्बूस्वामी उस विद्याधरसे कहने लगे हे विद्याधर ! क्षणभर ठहरो ठहरो, जबतक श्रेणिक महाराज तैयारी करें। यह महाराज बड़े पराक्रमी हैं। सर्व शत्रुभोंको जीत चुके हैं, उनके पास हाथी, घोड़े, स्थ, बलदोंकी चार प्रकारकी सेना है, यह महा धीर हैं, राजा बड़ा बुद्धिमान है, राज्यके सातों अंगों से पूर्ण है, तेजस्वी है व यशस्वी है। कुमारके वीरतापूर्ण वचन सुनकर विद्याधरको माश्चर्य हुमा । फिर वह विद्याधर सर्व वचन युक्तिपूर्वक कहने लगा-हे बालक ! तूने जो कुछ कहा है वही क्षत्रियों का उचित धर्म है, परन्तु यह काम असंभव है। इसमें तुम्हारी युक्ति नहीं चल सक्ती । यहाँसे वह स्थान सेड़ों योजन दूर है, वहां जाना ही शक्य नहीं है तब वीर कार्य करने की बात ही क्या ? तुम सब भूमिगोचरी हो, वे भामाशगामी योद्धा हैं, उनके साथ आपकी समानता कैसे हो सक्ती है ? जैसे कोई बालक हाथीको पानी में डालकर चन्द्रबिम्बकी परछाईको चन्द्र जानकर पकड़ना चाहें वैसा ही मापका कथन है । अथवा कोई बोना मानव बाहु रहित हो और ऊंचे वृक्ष फलको खाना चाहे तो यह हास्यका भाजन होगा वैसा ही भापका उद्यम है । यदि कोई अज्ञानी पगोंसे सुमेरु पर्वतपर चढ़ना चाहे, कदाचित् यह बात होजावे परन्तु मापके द्वारा यह काम नहीं होसक्ता है। जैसे कोई जहाजके विना समुद्रको तरना चाहे वैसे ही यह मापका मनोरथ है कि हम रमचूनको जीत केंगे । इस तरह हजारों दृष्टांतोंसे उस विद्याधरने अपने प्रभावका

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