Book Title: Jain Natakiya Ramayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 294
________________ जम्बूस्वामी चरित्र सुनकर कुमारने कहा कि मेरे मामाको शीघ्र यहां बुलाओ। पुत्रकी माज्ञा होनेपर माता शीघ्र विद्युच्चरको जंबूकुमारके पास ले गई। जम्बुकुमार मामाको देखकर पलंगसे उठे और भादर सहित स्नेह पूर्ण हो गले मिले। स्वामीने पूछा-इतने दिन कहां २ गए थे, मार्गमे सब कुशल रही ना ? सुनकर विद्युच्चरने भानजेकी बुद्धिसे कहा कि हे सौम्य ! सुन, मैंने इतने दिन कहां कहां व्यापार किया। दक्षिण दिशामें समुद्र तक गया हूं चंदन के वृक्षोंसे पूर्ण ऊंचे मलयागिर पर, सिंहलद्वीपमें (वर्तमान सीलोन) के रकदेश, मंदिरोंसे पूर्ण व जैनोंले भरे हुए द्राविड़देश (सामीलमें), चीणमें, कर्णाटकमें, काम्बोज, अति मनोहर बांकीपुरमें, कोतलदेशमें होकर उन्नन सह्य पर्वतके वहां आया। फिर महाराष्ट्र देशमें गया। वहांसे अनेक वनोंसे शोभित वैदर्भदेश बहारमें गया। फिर नर्मदा नदी के तट पर विध्य, पर्वतके वहां पहुंचा। विंध्याचलके वनोंको लांघकर आगे माहीर देशमें, चउरदेशमें, भृगुकच्छ (मरोंच)के तटपर माया । वहां धवल सेठका पुत्र श्रीपाल राजा राज्य करता है। कोंकणनगरमें होकर किकिध्य नगर में आया। इत्यादि बहुतसे नगर देखे, फिर पश्चिममें जाकर सौराष्ट्र देश (काठियावाड़) देखा । श्री गिरनार पर्वत पर आया। भी नेमिनाथ तीर्थकरके पंचकल्याणकोंके स्थान व वह स्थान देखा जहां श्री नेमनाथने राजीमतीको छोड़कर तप किया था। उसी गिरनार पर्वतसे यदुवंश शिरोमणि नेमनाथ मोक्ष प्राप्त हुए हैं। १६४

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