Book Title: Jain Natakiya Ramayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 293
________________ जम्बूस्वामी चरित्र विरक्त है व तब लेना चाहता है। सूर्यके उदय होते ही वह नियमले तप ग्रहण करेगा, इसमें कोई संशय नहीं है । उसके वियोगरूपी कुठारसे मेरे मन के सैकड़ों खंड होरहे हैं । इसीलिये मैं घचडाई हुईं हूं और वारवार इस घर के द्वारपर जाकर देखती हूं कि कदाचित् पुत्रका संगम अपनी वधुओंके साथ होनावे । जिनमतीके वचन सुनकर विद्युच्च के मनमें दया पैदा होगई, कहने लगा- हे माता ! मैंने रूव हाल जान लिया । तू भय न कर, 1 सुझसे इस फार्यमें जो हो सकेगा मैं करूंगा । तू मुझे जिस तरह बने कुमार के पास शीघ्र पहुंचा दे। मैं मोहन, स्तंभन, वशीकरण मंत्र तंत्र सब जानता हूं । उन सबसे मैं प्रयत्न करूंगा | व्याज यदि मैं तेरे पुत्रका संगम वधुओंसे न करा स्कूंगा तो मेरी यह प्रतिज्ञा है, जो उसकी गति होगी वह मेरी गति होगी । ऐसी प्रतिज्ञा करके यह विद्युचर बाहर खड़ा रहा। माताने धीरे२ द्वार खटखटाया। हाथ की अंगुली से द्वारपर थपकी दी, परन्तु लज्जावश मुखसे कुछ नहीं चोली । कुमारने शीघ्र किवाड़ खोल दिये । कुमार ने नमन किया, माताने आशीर्वाद दिया । तब जैवकुमारने विनयसे पूछा- हे माता ! यहां इस समय आनेका क्या कारण है ? तब जिनमती कहने लगी कि जब तुम गर्भ में थे तब मेरा भाई - तुम्हारा मामा वाणिज्य के लिये परदेश गया था | भाज वह तेरे विवाहका उत्सव सुनकर यहां माया है - तुम्हारे दर्शनकी बड़ी इच्छा है, वह बहुत दुर से पधारा है । जिनमनीके वचन | १६३

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