Book Title: Jain Natakiya Ramayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 291
________________ अम्यूस्वामी चरित्र लिये काट की। फिर वह विचरने लगा कि इसतरह भी जीता बचे. तो ठीक है, ममी तो कुछ विगड़ा नहीं है। इतने में किसीने पत्थर लेका उसके दांत तोड़कर निकाल लिये कि इनसे घर जाकर वशी. करण मंत्र सिद्ध करूड़ा। तब भी शृगाल विचारने लगा कि इसी तरह जान बचे तो वनमें भाग जऊ । इतने में कुपोंने आरक्षण. मात्र में मार डाला । रसना इन्द्रियके वश वह शाक जैसे मारा गया व कुत्तोंसे लाया गया वैसे मैं विषयों के मोहमें मंधा होकर नष्ट होना नहीं चाहता हूं। कौन बुद्धिमान जान बूझकर कुमार्गमें पडेगा । यदि मैं इन्द्रियों विषयों के वशमें निर्वस होकर फंस जाऊं तो फिर मेरा कौन उद्धार करेगा ? हे प्रिये ! तुम्हारे वचन परीक्ष में उचित नहीं बैठने हैं। इसतरह उन चारों महिलामोंकी नाना प्रहारकी वार्तालापोंसे महात्मा कुमारका मन किंचित् भी शिथिल नहीं हुषा। विद्युचरका आगमन । इवर कुमारके साथ स्त्रियां वार्तालाप कर रही थीं, उधर उस रात्रिको विचर नामका एक चोर कामलता वेश्याके घरसे चोरी करनेको निकला। कोतवालसे अपनी रक्षा करता हुभा वह चोर उस रातको अहदास सेठके घर चोरी करनेको माया। जहां कुमारका शयनालय था वहांपर भागया। कुमारका अपनी स्त्रियोंसे जो वार्तालाप होरहा था उसको सुनकर विचारने लगा कि पहले इस कौतुकको देख कि रत्नोंको चुराऊ ? सुननेकी दृढ़ माकांक्षा होगई।

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