Book Title: Jain Natakiya Ramayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 283
________________ अम्बूस्वामी चरित्र शस्त्रपात के समान दुःखदाईं इन कठोर वचनों को सुनते ही चारों सेठ कांपने लगे, मनमें आश्चर्य हो माया । शोचसे मांखों में पानी आगया, आकुलित होकर कहने लगे। क्या कुमार कहीं अन्य l न्यासे विवाह करना चाहते हैं, या कोई और कारण है सो सच सच कहो। तब दूतने बड़ी चतुराईसे यह सच बात कह दी कि महो जम्बूस्वामी तो संसारसमुद्र से शीघ्र तरना चाहते हैं । वह संसारके दुःखोंसे भयभीत हैं । निश्चयसे कामभोगोंसे उदासीन हैं, उनके भीतर मुक्तिरूपी कन्याके लाभकी भावना है । वे अवश्य जैनधर्मकी दीक्षा ग्रहण करेंगे । इस बातको सुनकर के चारों सेठ उदास होगए । और घर के भीतर जाकर उन कन्याओंको बुलाया और उनको समझाने लगे। वे कन्या मन, वचन, कायसे कुलाचार व शीलव्रतको पालनेवाली थीं। हे पुत्री ! सुनानावा है, जंबूकुमार भोगसे उदास होगये हैं व मोक्षकाभके लिये तप पूर्वक व्रत लेना चाहते हैं | जैसी उनकी इच्छा, उनको कौन रोक सक्ता है ? अभी तक हमारी कोई हानि नहीं है, तुम्हारे लिये दूसरा वर देखकिया जायगा । कहा है तद्गृहातु यथाकामं का नो हानिस्तु सांप्रतम् । भवतीनां समुद्रा भवेच्चाद्य वरोऽपरः ॥ ७० ॥ कन्याओंकी विवाहकी हढ़ता ! पिताके इन वचनों को सुनकर पद्मश्री उसी तरह कांपने लगी जैसे कोई योगी के प्रमादसे प्राणीकी हत्या के होजानेपर योगीका तन कंपित होजाता है । पद्मश्री कहने लगी- हे पिता ! ऐसे लज्जाकारी अशुभ वचन १४२

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