Book Title: Jain Natakiya Ramayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 288
________________ जम्बूस्वामी चरित्रः न भोग लगाया न दानमें लगाया। जिसके स्वाधीन लक्ष्मी हो फिर भी वह उसका भोग न करे तो वह पीछे उसी तरह पछताएगा जैसे संख दरिद्रीको पछताना पड़ा। . जम्बूस्वामीकी कथा। विनयश्री की कथा सुनकर नाबूस्वामीने फिर एक कथाके बहाने उत्तर दिया । लब्धदत्त नामका एक बनिया था। व्यापार के लिये बाहर गया था, सो मार्गमें एक भयानक वनमें खा पड़ा। पापके उदयसे उसके पीछे एक भयानक हाथी क्रोधित हो उसको -मारनेको दौड़ा। उससे भयभीत होकर वह बनिया भागा भौर यकायक एक करके जार वटवृक्षकी शाखा पकड़कर लटक गया। उस शाखाकी जड़को दो चूहे एक सफेद एक काले काट रहे थे। बणिक देखकर विचारने कगा कि क्या किया जाय । यह शाखा कटी कि काके भीतर मष गिर जाऊँगा, शरीरके शतखण्ड हो जायगे। ऐसा विचारते हुए नीचे देखा तो कूपमें एक बड़ा अजगर बैठा हुआ है, देखकर कांपने लगा। फिर देखा तो चारों -कोनोंसे निकले हुए भयानक सांप कूपमें बैठे हैं । उस समय उस वणिकको जो संकट हुआ वह कहा नहीं जा सकता। हाथी क्रोप्में होकर उस वटवृक्ष को अपने कन्धे से उखाड़नेका उद्यम करने लगा व "ध्वनि भरने लगा। जहां वह वणिक स्टक रहा था उसके कार एक मधु मक्खियोंका छत्ता था। यकायक मधुकी बूंद उस वणिके मुखमें भापड़ी। उस बूंदके स्वादसे वह बड़ा राजी होगया । १५८२

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