Book Title: Jain Natakiya Ramayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 262
________________ - जबुस्वामी चरित्र ___ वहां कोई यक्ष बैठा था, वह यह सुनकर भानंदसे पूर्ण हो नृत्य करने लगा। हे स्वामी ! ऐ केवलज्ञानी! हे नाथ! जय हो, जय हो, मापले प्रसादसे मैं लतार्थ होगया। मैंने पुण्यका फल पालिया। उसका कुल बन्छ है, प्रशंसनीय है, जहां केवलोका जाप हो, उस कुको सूर्य के समान केवलज्ञानले वह प्रकाशित होगा। वही पवित्र देश है, वही शुभ नगर है, वही कुल पवित्र है, वही घर पावन है, जहां सदा धर्मका प्रवाह रहता है। कहा है: स एव पाबनो देशस्तदेव नगरं शुभम् । तत्कुलं तद्गृहं पूतं यत्र धर्मपरंपरा ॥ ५७ ॥ जम्बूस्वामी कुलकया। वह यक्ष अपने भासनपर खड़ा खड़ा बाबा हर्षले नृत्य करने लगा। तब श्रेणिकने पूछा कि महाराज! यह यक्ष क्यों नृत्य कर रहा है ? गौतम गणेशशज श्रेणिकर कहने लगे-इसी नगरमें एफ श्रेष्ठ बणिक पुत्र था, जिसका नाम धनदत्त था जो सौम्यपरिणामी था व धन कुबेरके समान था । उसकी स्त्री सुन्दर गोत्रमती नामकी थी, उसके दो पुत्र थे । बड़ेशा नाम अर्हदास जो बहुत बुद्धिमान है। छोडेका नाम जिनदास था, जो चंचल बुद्धि था ? पापके तीन उदयसे वह सर्व जुआ आदि व्यसनोंमें फंस गया : यह दुर्बुद्धि मांस खाने लगा, मदिरा पीने लगा, वेश्यासेवन करने लगा ! पापी जुआ मी रमने लगा। उसका सर्व कर्म निंदनीय हो गया। इधर उधर दुःखदाई चोरीका धर्म भी करने लगा। भषिक क्या-पहा जावे।

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