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श्री जैन नाटकीय रामायण ।
ब०-क्यों नारदजी आप इस विषय में क्या कहते हैं? ना०--मैं जो बात सत्य है उसे कहता हूं। व०-वह क्या ?
ना०-वह यह कि गुरुनी अज का अर्थ बिना छिलके के चावल करते थे। जो बोने से न उग सके । उस में हिंसा का नाम भी नहीं था। और पर्वत ऐसी बात कहता है जो हिंसा से परिपूर्ण है। गुरुजी कभी ऐसा उपदेश नहीं दे सकते थे ।
५०-जन | मैं सत्य कहता हूं ? या ये सत्य कहते हैं ? श्राप इस बात का न्याय कीजिये जिसका बचन असत्य निकलेगा उसकी जिव्हा काट ली जायगी ।
व०-क्यों नारदजी आप इसमें सहमत हैं न ? ना०--मैं तनमन से सहमत हूँ।
व०-यदि आपके विरुद्ध में न्याय होतो श्राप जिव्हा कटाने को तयार हैं न?
ना.---यदि मेरा बचन असत्य होगा तो मैं अवश्य जिव्हा कटा लूंगा।
५०-कहिये पर्वतजी आप को भी स्वीकार है न ? प०-मैं इसे मन बचन काय से स्वीकार करता हूं। व०-तो सुनिये, पर्वत का बचन सत्य है। (सिंहासन टूट कर पृथ्वी पर गिर पड़ता है।)