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श्री जैन नाटकीय रामायण
. सज्जन-मालूम होता है आप स्त्री शिक्षा के पोषक हैं।
सेठजी-ऐसे शुभ कार्य का पोषक कौन नहीं होगा। दूसरे देशों में स्त्री शिक्षा का कितना अधिक प्रचार है।
सज्जन-मैं मानता हूं कि दूसरे देशों में स्त्री शिक्षा का अत्यधिक प्रचार है और बिना स्त्री शिक्षा के प्रचार के कोई देश उन्नत भी नहीं हो सकता । किन्तु...।
सेठजी-किन्तु क्या? . ____ सज्जन-वह यह कि दूसरे देशों में स्त्रियों को वहीं की भाषा सिखाई जाती है। वहां पर मुश्किल से एक करोड़ एक में एक स्त्री ऐसी निकलेगी जो विदेशी भाषा पढती हो। किन्तु भारत बर्ष को देवियां केवल अपना जीवन अधर्म के गढ़े में डालने के उद्देश्य से विदेशी भाषा पढ़ती हैं । इसका आज कल जो परिणाम हो रहा है वह किसी से छिपा हुआ नहीं है। दूसरे देशों में जहां पर विवेक का और शील का नाम मात्र भी नहीं वहां का दृष्टांत सामने रख कर बालिकाओं को विगाड़ना ये कहां का न्याय है। . सेठजी--जब श्राप विदेशी भाषा का इतना विरोध करते हैं तो पुरुष उसे क्यों पढ़ते हैं ? जिस काम को पुरुष करें उस काम को स्त्रियों को क्यों नहीं करना चाहिये ?