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तृतिय भाग ।
( १५५)
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केकई-आइये, रथ में बैठ कर युद्ध कीजिये । इस पापी को इसकी धूर्तता का फल दीजिये ।। दशरथ रथमैं बैठता है)
कहिय किघर की ओर रथ चलाऊ !
दशरथ-रथ उसी ओर चलाओ जिस ओर से यह अमिमानी मारा जा सके।
(रथ चलता है युद्ध होता है पर्दा गिरता है।)
अंक प्रथम-दृश्य द्वितिय
कौमिक ( एक मारवाड़ी फैशन में सेठजो आते हैं ।
सेठजी-जहां देखो भाज कल शिक्षा का बोल बाला है वास्तव में शिक्षा ही एक ऐसा विषय है । जो मनुष्य को मनुष्य बना देता है। दूसरे देशों में स्त्री शिक्षा का कितना भधिक प्रचार है। वहां पर स्त्रियों को समान अधिकार दिये जाते हैं। स्त्रियां स्वतन्त्रता पूर्वक गमन करती हैं । हे ईश्वर हमारे भारतवर्ष को वह घड़ी कत्र प्राप्त होगी ?
१ सज्जन-(माकर) हे ईश्वर भारत को कभी भी वह घड़ी प्राप्त न हो जिसमें स्त्रियों के मुंह पर बारह बजने लगे।
सेठजी--मालूम होता है भाप सी शिक्षा के विरोधी हैं।