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श्री जैन नाटकीय रामायण
मोहिनी-पिताजी आपने मुझे पहले से ही कह रखा है कि मुझे आज्ञा लेने की कोई आवश्यक्ता नहीं है। दूसरे यदि मैं आज्ञा मांगू और भाप न दें, तो मेरा जाना रुक जाय । कहिये में चली जाऊ न मीटिंग में ?
सेठजी-(स्वगत) बस अब ये छोरी बिगड़ गई। वास्तव में मेरे सिर पर कलंक का टीका लगायेगी ।
मोहिनी-पिताजी ! आप क्या सोच रहे हैं। मुझे उत्तर दीजिये । मीटिंग के लिये देर होरही है।
सेठजी-~-श्राज मेरी कुछ तबियत खराब है । मैं चाहता हूं कि तुम भाज कहीं मत जाओ! __ मोहिनी-आपकी तबियत में मैं क्या कर सकती हूं। आप मुझे मीटिंग में जाने से क्यों रोकते हैं । भाप कहें तो मैं उधर से उधर ही डाक्टर को बुलाती लाऊंगी ।
सेठजी-मोहिनी मैं तुम्हारा पिता हूं । क्या तुम भाज इतना भी नहीं कर सकती कि मेरे लिये रुक जाओ!
मोहिनी---यदि मैं किसी बुरे काम के लिये जाती हो तो आप मुझे रोकते । अब मैं कदापि नहीं रुक सकती हूं।
गुडबाई ( चली जाती है ) सेठजी-इन सुधार कों का नाश हो ! इन्होंने मुझे