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श्री जैन नाटकीय रामायण ।
१ दूत-( पाकर ) महाराजाधिराज की जय हो । जनक पुरी से एक दूत पाया है।
दशरथ-उसे तुरन्त मेरे सामने उपस्थित करो। ( दूत जाता है जनक का दृत श्राता है। ) कहो क्या समाचार लेकर आये हो?
दूत-महाराजाधिराज की जय हो । कैलाश पर्वत के उत्तर की ओर म्लेक्ष लोगों का वास है। सातों "व्यसन उनमें पाये जाते हैं। कुछ ही दिन हुने कि महाराजा जनक का पुत्र किसी देव के द्वारा हरा गया था। उसके दुख से वो दुखी थे कि इतने में ही म्लेक्ष लोग बहुत बड़ी सेना लेकर सारे आर्य 'देशों को उजाइते हुने मिथिलापुरी भागये हैं। यहां पर वो घोर उपद्रव मचा रहे हैं। किसी के द्वारा जीते नहीं जाते । सबको अपने ही धर्म में मिलाना चाहते हैं। आपसे उन्हें भगाने के लिये महाराज ने प्रार्थना की है।
दशरथ-पुत्र पद्म तुम राज्य का भार सम्हालो । मैं जाकर उनको भगा कर पाता हूं । यदि मैं युद्ध में मारा भी गया तो कोई चिन्ता नहीं । क्षत्रियों का धर्म ही युद्ध काना है । .
रामचन्द्र-यह कदापि नहीं हो सकता कि मेरे होते हुवे माप युद्ध के लिये जाय । मैं जाकर उन म्लेक्षों को अभी भगाता हूँ।