Book Title: Jain Natakiya Ramayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 249
________________ जम्बूस्वामी चरित्र वहांके सर्व जन परस्पर बातें करने लगे। यह क्या हुभा, सबको बड़ा ही माश्चर्य हुमा । परस्पर वादविवाद करनेपर बड़ा कोलाहल हुमा । शिवकुमारने अपने महलमें सब वृत्तान्त सुना। वह महलके ऊपर माया और मानन्दसे कौतुकपूर्वक देखने लगा । मुनिराजका दर्शन करके चित्तमें आश्चर्यपूर्वक विचारने लगा। महो । मैंने किसी भवमें इन मुनिराजका दर्शन किया है। पूर्व जन्मके संस्कारसे मेरे मनमें स्नेह भर गया है और बड़ा ही मारहाद होरहा है। इसलिये मैं जाऊं और अपना संशम मिटाने के लिये मुनिगजसे प्रश्न करूँ। शिवकुमारको जाति स्मरण । ऐसा विचारता ही था कि इतने में उसको पूर्वजन्मका स्मरण होगया। उसी समय पूर्वजन्मका सब वृत्तान्त जानकर उसने यह निश्चय कर लिया कि यह मेरे पूर्वमवके बड़े भाई हैं। भाष यह तपस्वी महामुनि हैं । इन्होंने ही कृपा करके मुझे धर्ममें स्थापित किया था। उस धर्मके साधनसे पुण्य बांधकर पुण्यके उदयसे मैं परम्परा सुखको पाता रहा हूं। मैंने तीसरे स्वर्गमें देव होकर महान भोग भोगे और मन सर्व सम्पदासे पूर्ण चक्रवर्ती के घरमें जन्मा हूं। यह मेरा सच्चा भाई है, इस लोक पर लोकका सुधारनेवाला है। इस तरह बुद्धिमान शिवकुमारने पूर्वभवका सर्व वृत्तान्त स्मरण किया और उसी क्षण में मुनिराजके निकट भागया । मुनिवरको देखकर शिवकुमारकी मांखों में प्रेमसे मांसू निकल आए। जैसे वह मुनिराजके पास गया, प्रेमके उत्साहके वेगसे वह मूर्छित होगया । चक्रवर्तीने जब यह सुना कि शिवकुमारको मूर्छा भागई है

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