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( २३४ )
श्री जैन नाटकीय रामायण
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मनु०---अच्छा ला मुझे दो रुपये दे । स्त्रो०---काहे के लिये चाहिये ? मनु०---तुझे क्या मतलब, मुझे एक काम को चाहते हैं।
स्त्री०---जब तक मुझे बताओगे नहीं, मैं एक पैसा भी नहीं दूंगी।
मनु० ---अरे बाबा क्लब में चन्दा देना है।
स्त्री-कोई जरूरत नहीं किलब उल्लब में जाने को, अपने घर में ही छोरे को दो रुपये महीना दे दिया करो, और गंजफा खेला करो।
मनु०--मैं अगर क्लब नहीं जाऊंगा तो मेरी तन्दुरुस्ती खराब होजायगी।
नारी-होजायगी तन्दुरुस्ती खराब तो होजाओ । पता है बड़ी मुश्किल से पैसा इकठ्ठा होता है।
मनु०-अच्छा तो ला चार पैसे पान खाने को तो दे। नारी-पान एक पैसे का खाया जाता है। मनु०-अगर कोई मित्र लोग साथ में हों तो ?
नारी-वो अपने पास से लेकर खावें । वो क्या कोई भूखे नंगे हैं जो उन्हों को तुम ही खिलाओगे । बस सब खाने वाले ही हैं कोई खिलाने वाला भी है ?
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