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द्वितीय भाग ।
( १०१ )
सभासद लोग - महाराज सत्य बोलिये | वरना थाप नरक गामी बनेंगे ।
ना० - कुंठा न्याय करने से तुम्हारा सिंहासन टूट गया । यदि कल्याण चाहते हो तो अब भी सत्य बोल दो वरना आप के बचन प्रमाण जो अत्याचार जब तक संसार में होते रहेंगे तब तक भाप नरक में से नहीं निकल सकेंगे यदि आप को अपना कल्याण करना हो और जीव हिंसा बचानी हो । तो जो गुरुजी ने कहा है वह सत्य कह दीजिये ।
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व०- ( पृथ्वी पर पड़ा हुआ ) पर्वत का बचन सत्य है ( सिंहासन पृथ्वी फट कर उसमें समा जाता है । साथ २ वसू भी जाता है )
सभासदी- - यह पर्वत महा पापी है । इसने राजा से झूठ नारदजी की जिव्हा
चुलवा कर उसे नरक में भेजा | हम लोग नहीं किन्तु तुम्हारी जिव्हा काटेंगे ।
( पर्वत भाग जाता है ) ना०- देखो जिव्हा कटने के भय से भाग गया | सभासदी- - हम अभी पकड़ कर लाते हैं ।
ना० - जाने दो, जो जैसा करेगा वैसा भुगतेगा ।
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( सब लोग फटी हुई पृथ्वी की ओर देखते हैं ! पर्दा गिरता है ।