________________
( १५२ )
श्रीजैन नाटकीय रामायण ।
-
शोभते राज में ढेर रत्नों के ॥ शोभती है सभा भेष, भेष से हां । आये०
(केकई को आते देख कर) कौमुदी सी लखो केकई आगई। देवियों सी दिपै, सुन्दरी आगई ॥
सूर्य फीका हुआ, इनके तेज से हो । आये. (सब गाकर चली जाती हैं। एक द्वारपाल खड़ा
होकर कहता है। द्वारपाल--हे देश विदेश से आये हुवे महाराजाओं। श्रापको इस कौतुक भंगल नामक नगर में इस लिये कष्ट दिया गया है कि श्रीमान महाराजा शुभमती जिनकी महाराणो पृथु श्री को केकई नामकी कन्या आप लोगों में से अपने लिये वर वरे।
सखी-( केकई से ) हे कुमारी ये जनकपुरी से भाये हुबे महाराज जनक हैं । ( दूसरे को बताकर ) ये अयोध्यापुरी से आये हुवे महाराज दशरथ हैं। ये सर्व गुण सम्पन्न सर्व विद्याओं में निपुण तथा सब भांति से योग्य हैं। (केकई राजा दशरथ के गले में वर माला डाल देती है)
१ राजा-हमें दशरथ और केकई का जोड़ा देखकर अत्यन्त हर्ष है। जैसी योग्य कन्या है वैसा ही उसे वर मिला है,