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श्री जैन नाटकीय रामायण ।
ने तुम्हें त्याग रखा है। वह इतना बड़ा उनका अपराध भुला कर तुम उलटी उनकी प्रशंसा कर रही हो । धन्य हो तुम्हें । तुम सरीखी स्त्री इस भारत माता की कोख में ही जन्म लेती हैं । अंजना का गाना
कर्म ने मुझको रुलाया, हाय अबला जान कर । मुझको प्रीतम ने तजी क्या, दोष मेरा मान कर ॥ होगये बाइस बरस मेरे विवाह को ऐ सखी | क्या कभी मुझको पती, दर्शन न देंगे श्रान कर ॥ हॅस के ना बोले कभी, संग में न मिलकर बात की। देखा नहीं मेरी तरफ, उनने कभी भी ध्यान घर ॥
बसंत तिलका सखी, धैर्य्यं घरो। तुम बाइस बरस से रोते २ इतनी दुर्बल हो गई हो । न मालूम कब तक तुम्हारे भाग्य में और रोना लिखा है । किन्तु अब मुझे आशा होती है कि वह शीघ्र ही तुमसे मिलेंगे ।
पवन जय ---- ( आकर स्वगत ) आज मुझे अपने जीवन में रणभूमी में जाकर कौशल दिखाने का अवसर प्राप्त हुआ है । रावण वरुण से युद्ध कर रहा है । मैं आज उसकी सहायता के लिये जारहा हूं । मैं वरुणा को दिखाऊंगा कि रावण से वैर
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