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( १३२ ) पीजैन नाटकीय रामायण ।
शिला पर पड़े हुवे पैर का अंगूठा चूसने लग जाते हैं
ऊपर से सब हा हा कार मचाते हैं । अंजना रोती है)
अंजना-हाय, अनेको दुख सह कर यह पुत्र प्राप्त हुश्रा था। मैं अभागिनी इसे भी खो बैठी । हाय मेरा कैसा बुरा भाग्य है । ( सब उतर कर पाते हैं ) ( राना पुत्र को देख कर आश्चर्य करता है ) .
राजा-धन्य है इस बालक को । इसके गिरने से पर्वत चूर २ होगया। यह अवश्य ही चर्म शरीरी और मोक्ष का गामी है। ___ अंजना--( गोद में उठा कर ) मेरे लाडले बच्चे, (आंसू पूंछती हुई मुंह चूमती है )
राजा-यह बालक बन्दनीक है । हम सब इसको नमस्कार करते हैं। मैं इसका नाम श्री शैल रखता हूं। क्योंकि इसके गिरने से शैतु जो पर्वत वह 'चूर २ होगया।
अंजना--यह हनूरूह द्वीप में वृद्धि पाने जा रहा है। इस लिये मैं इसका नाम इनूमान रखती हूं।
ज्योतिषी-आप लोग 'कुछ मी नाम रखें । मैं तो इसे बनांग कह कर पुकारूंगा । क्यों कि मुझे इसके समान वल में इस पृथ्वी पर दूसरा नहीं दीखता ।
बसन्तमाला-ऐसे होनहार बालक को जिस नाम से , भी पुकारा जाय वही इसके लिये उत्तम है । ये महावीर। है