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श्रीजैन नाटकीय रामायण।
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ब०-वीरसिंह जैसा मनुष्य होना दुर्लभ है । बेचारा मुझसे कितना प्रेम रखता है।
वीर सिंह की बहू-(भाकर ) हां मैं भी जानती हूं जैसा प्रेम वो रखते हैं । मेरे सुसरे को तू खा गई अब हम लोगों के ऊपर मेहरबानी रखो।
ब०-भरी बहू ! तु कैसी बातें करती हैं । मुझे क्या ये अच्छा लगताथा कि मैं विधवा हो जाऊं।
वी०कीब-अच्छा क्या, तूतो पूरी डाकन है । तेरे बाप ने तुझे दो हजार में बेची है।
4०-देख बहू ऐसा मत कह । मुझ दुखिया को और दुखी न कर। .
बी० ब०-अब तो हमारी बातें भी छुरी सी लगती हैं। बस मेरे पती को फुसला रखा है। खबरदार जो मेरे घर में रही।
ब. तो मैं कहां जाकर रहूं?
वी० ब०-चूल्हे में, भाड़ में, मट्टी में । और अगर कोई जगह न मिले तो कूवे में । .
ब-तो क्या मैं अात्महत्या करलूं ।
वी० ब० तेरे जीने से फायदा ही क्या है जो मरने से नहीं होगा।