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कहीं की ।
प्रथम भाग ।
बह - खिलाने को क्या वह तो तुम्हारा ही होगा । राजमल — कहीं लड़कों के भी छोरे होते हैं ? बावली
स्त्री हूँ ।
( ३३ )
वह प्राणनाथ, श्राप नाराज न हों, मैं तो आपकी सती
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राजमल - जैसी सीता सती थी वैसी ही है ? यहू - इसमें क्या कुछ संदेह है ?
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राजमल - ठीक रामचन्द्रजी कालेथे ! उनकी स्त्री सीता सती थी | लक्ष्मण उनका सेवा किया करते थे। ऐसे ही हमारे यहां कल्लू है उसकी स्त्री तुम हो। और तुम अपने को सती कहती हो, तब तो मुझे तुम्हारी पूजा करनी चाहिये । क्यों कि किताबों में लिखा है कि सती की सेवा करना परम धर्म है ।
बहू -- तुम तो मेरी हँसी उड़ाते हो ! कैसा कल्लू ! कल्लू को मैं क्या जानूं ।
राजमल - - पिताजी कल्लू को घर से निकाल रहे हैं तुम्हें भी उनका बन के लिये साथ करना चाहिये । मैं तो उसी के साथ जाउँगा ।
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( चला जाता है । वह को सोत्र होजाता है । बहू --- हाय मेरे माता पिता ने मुझे इससे व्याह कर मेरी तकदीर फोड दी | मेरी बहन शान्ती की सगाई की थी, उसका
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