________________
प्रथम भाग,
(४७)
गाना श्री इन्द्र देव महाराजा, बज रहा खुशी का बाजा। हां गायो, हां गायो, हर्षित होकर यश गायो॥ जिनकी महिमा अगणित है, सबही में जिनका हित है। हां गायो, हां गायो, हर्षित होकर यश गायो॥ (पटा क्षेप) दृश्य समाप्त
अंक द्वितिय-दृश्य छटा (वानर वंशी महाराजा सूर्यरजका किष्किन्धा में दर्वार.). ( पास में ही उनके दोनों पुत्र वाली और सुग्रीव,बैठे हैं।)
सूर्यरज--पुत्र बाली, तुम राज कार्य में सर्वथा योग्य हो। मैं भव वृद्ध होगया हूँ। यह संसार महा दुख दाई है। नहीं मालूम मैं कितनी बार चौरासी लाख योनियों में भ्रमा हूँ। मैंने यह मनुष्य जन्म पाया है। इसको सफल करना चाहिये । तुम इस राज्य सिंहासन के स्वामी बनो मैं बन में जाकर तपस्या करूँगा। और कर्मों को काटने का उपाय करूंगा।
बाली-महाराज, मैं यद्यपि इस कार्य के लिये सर्वथा अयोग्य हूँ किन्तु आपकी भाज्ञा का. उलंघन करने में सर्वथा असमर्थ हूँ।