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भी जैन नारकीय रामायण ।
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कमी खाली नहीं जायगा । तेरे मारने वाले पर भी यह अवश्य अपना असर दिखायेगी। ..
रावण-मैंने अपने अपराध क्षमा कराने के लिये गुरु देव की प्रार्थना की थी, इस लिये नहीं, कि तुमसे शक्ती ग्रहण करूँ, यदि तुम मुझे भगवान की भक्ती के उपलक्ष में यह देते तो मैं कभी इसे ग्रहण नहीं करता । क्यों कि जिसकी भक्ती से मोर के सुख मिलते हैं तो मैं ऐसी छोटी सी वस्तु को लेकर क्या करता । किन्तु तुम भाई के नाते से दे रहे हो। इस लिये इसे सहर्ष स्वीकार करता है।
सब मिलकर गाते हैं। जय जिनेन्द्र,जय जिनेन्द्र,जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र
पर्दा गिरता है। ___ अंक तृतिय-दृश्य द्वितिय (बिल्कुल फटे मेष में राजमल की बहू आतीहै।)
बह-मन्धकार, अन्धकार, भान मेरे लिये चारों ओर