________________
(८२)
श्री जैन नाटकीय रामायण।
पर्वत-उनमें से एक मुनी ने कहा कि यह चार जीव हैं। एक गुरु और तीन शिष्य । जिन में से एक गुरु और एक शिष्य तो भव्य हैं ये जग में अपना और पराया उपकार करेंगे । र शिष्य जगत में महा मिथ्यात्व फैलाने वाले हैं। ये नरक गामी होंगे।
माता-वह दो कौन कौन ?
पर्वत-पिताजी ने पूछा किन्तु मुझे पता नहीं कि उन्हों ने बताया या नहीं बताया।
माता-किन्तु यह तो बताओ कि तुम्हारे पिताजी कहां रह गये ?
पर्वत-उन्होंने हम तीनों को उपदेश देकर विदा कर दिया । और स्वयं ........
माता--स्वयं क्या ? पर्वत--स्वयं दिगम्बर मुनी........
माता-हाय, मेरा तो भाग्य फूट गया। अब मैं बिना पती के कैसे रहूंगी । ( रोती है । हे पती देव तुमने मेरे यौवन पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया। अब मैं कहां जाऊं क्या करूं ? दुष्ट मुनियों ने मेरे पती को मोह लिया । क्या मैं वहां जाकर उनसे घर लौटने के लिये प्रार्थना करूं ? किन्तु वह कभी भी मुझे दिलासा देकर मेरे साथ नहीं आयेंगे । हे पती देव, कुछ