________________
प्रथम भाग।
(५१)
-
है हमारे से नहीं जीता जायगा । उसे चौदह हजार विद्यायें सिद्ध हैं । दूसरे इस समय बड़े भाई साहब भी उपस्थितनहीं हैं।
कुंभकरण-क्या हुआ, यदि मैं युद्ध में लड़कर मर भी जाउँगा तो कोई बात नहीं, किन्तु उससे युद्ध अवश्य करूँगा।
रावण-( आकर आश्चर्य से ) क्या बात है । तुम लोग क्यों घबरा रहे हो?
विभीषण-महाराज राक्षस वंशी महापराक्रमी राजा खरदूषन हमारी वहन चन्द्रनखा को छल से उठा ले गया ।
रावण-क्या कहा बहन को उठा ले गया ? उसने इतना बड़ा काम किसके बूते पर किया । क्या उसे मेरे बलका, पता नहीं है । मैं अभी जाकर उसे छुड़ाकर लाता हूँ।
विभीषण-भाई साहब की आज्ञा होतो सेना सजाई जाये।
रावण-नहीं मैं अकेला ही उसके लिये काफी हूँ। तुम दोनों यहां रहकर नगर की रक्षा करना । (जाने लगता है। पीछे से मन्दोदरी आकर पैर
पकड़ लेती है), रावण-क्यों मन्दोदरी तुम मुझे क्यों रोकती हो । क्या एक क्षत्राणी का यही धर्म है कि वह रण में जाते हुवे पतीको रोके ।
मन्दोदरी-नहीं पतिदेव, मेरा यह धर्म नहीं है कि मैं