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प्रथम भाग।
(५७)
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अंक तृतीय
'इश्य प्रथम स्थान-कैलाश पर्वत की तलहटी (कैलाश के ऊपर बहुत से जिन चैताल्य बने हुवे हैं। पाली मुनि तपस्या कर रहे हैं। रावण अपनी
स्त्री और मंत्री सहित आता है।) रावण-चलते चलते मेरा विमान क्यों रुक गया ? मंत्रीजी क्या आप इसका कारण बता सकते हैं ? ___ मंत्री महाराजाधिराज, यह कैलाश पर्वत है। यहां पर भनेक जिन चैत्यालय हैं । महा मुनि बैठे हुवे तपस्या कर रहे हैं इनमें यह शक्ति है कि कोई भी विमान बिना बन्दना किये हुने उलांघ कर नहीं निकल सकता।
रावण-अच्छा मैं समझा, जिन धर्म का बहुत उच्च महत्व है। ( पर्वत की ओर देख कर ) यह सामने कौनसे मुनि तपस्या कर रहे हैं ? मालूम होता है यह बाली है इसने मुझसे वैर निकालने के लिये ही मेरा विमान रोका है। ........: मरे दुष्ट बाली ! तू क्यों यह झूठी दिखावटी तपस्या कर रहा है। तू कषायों से प्रज्वलित हो रहा है और वीतरागता का ढोंग रचता है । तूने मुझसे बैर निकालने के लिये मेरा विमान रोका है। अच्छा देख मैं तुझे अभी इसका फल देता हूं। ,