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श्री जैन नाटकीय रामायण ।
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आपको रण में जाने से रोकू। 'रावण- तो फिर ?
मन्दोदरी-एक पतीवृता नारीका यह धर्म है कि वह आपत्ति में पड़ने से अपने पती की रक्षा करे । - रावण-कैसी आपत्ति । रावण के लिये क्या किसी ने आपत्ति का नाम सुना है? __ मन्दोदरी---यह सच है प्राणनाथ, किन्तु वहं चौदह हजार विद्याओं का स्वामी है । आप उससे कदापि नहीं जीत सक्ते ।
रावण-मन्दोदरी तुम पतिवृता स्त्री होकर अपने पती को हतोत्साहित करती हो।
मन्दोदरी नहीं इसमें एक और भी रहस्य है । रावण--यह क्या ?
मन्दोदरी-वह यह कि यदि आप उससे पराजित होण्ये तो श्रापका मान भंग होगा, और यदि वह युद्धमें हार गया तो आपकी बहन बिधवा होजायगी । वह दृषित हो चुकी है। यदि आप उसे ले भी आयेंगे तो कोई दूसरा नृपति स्वीकार नहीं करेगा । इस प्रकार आपका घोर अपयश फैलेगा । इस लिये आप मेरा कहना स्वीकार कीजिये और उसके प्रति अपना वात्सल्य भाव दर्शाइये । क्यों कि श्रापकी बहन के लिये बिना खोजे ही बह बहुत योग्य बर मिल