Book Title: Jain Natakiya Ramayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 11
________________ (३०) श्री जैन नाटकीय रामायण । बाप-लेकिन सजमल तो बहुत छोटा है वह तो अभी चौदह का ही है । और उसके पास जाते भी शर्माता है। मां-बस एकही बात पकडली, आज कल के छोरे आस्मान से बातें करते हैं। आपके सामने वह ऐसा ढोंग बनाता है जिससे आप उसे सीधा समझे । वैसे वह बडा गुन्ना है । तुम्हारे हमारे सब के कान काटले । चाप-काटता होगा, मुझे तो ताज्जुब होता है कि गर्भ कैसे रह गया । अरे याद आया, गर्भ नहीं होगा। वैसे ही पेट में खराबी होगई होगी सो महावारी बन्द होगई है। किसी को दिखाया भी ? मां--तुम्हें तो सिवाय बहम के और ताज्जुब के दूसरा काम ही नहीं, दिखाया कैसे नहीं, दाईने तीन महीने का बताया है। बाप-अच्छा जाओ ( इतने लोगों के सामने मत कहो वरना ये हंसी उडायेंगे ) (चली जाती है) राजमल-(पाकर ) पिताजी, क्या सोच रहे हो, खुशी मनाओ । 'अबतो बहू के छोरा होगा ! मैं उसे खूब खिलाया करूँगा। । . बाप-( चपत मार कर. ) छोरा होगा र लगाई, चौदह बरस का बैत्त हो गया अभी तक खाक की भी अकल नहीं आई।

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