Book Title: Jain Itihas ki Prerak Kathaye Author(s): Amarmuni Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra View full book textPage 6
________________ में है, किन्तु उत्तरवर्ती ग्रन्थों में कथा सूत्र ने जो नया व प्रेरक मोड़ लिया है, वह कथाओं की विकास-यात्रा का एक स्वतन्त्र अनुशीलनात्मक अध्याय है। इस संग्रह की कुल तेरह कथाओं पर से जीवन के सम्बन्ध में जो मौलिक प्रेरणाएं ध्वनित हुई हैं, वस्तुतः वे ही कथा-साहित्य की मूल थाती हैं । मुझे आशा और विश्वास है कि इन कथाओं को पाठक भले ही मनोरंजन के लिए पढ़ें, किन्तु पढ़कर उनके अन्तर्मन में जीवन का कोई-न-कोई सुन्दर विचार, महान प्रेरणा और उदात्त संकल्प यदि एक बार भी जग उठा, तो कथा अपने आप कृत-कृत्य कथा हो जायेगी। इसी में लेखक, सम्पादक, प्रकाशक और पाठक के लक्ष्य, श्रम तथा समय की सार्थकता है ! वीर जयंती २२ अप्रैल १६६७ । --उपाध्याय अमरमुनि चतर्थ संस्करण काफी समय से चतुर्थ संस्करण की मांग प्रेमी पाठकों की ओर से हो रही थी। विलंब प्रकाशकों की ओर से नहीं, मेरी ओर से ही था। मैं कथाओं का नये सिरे से परिष्कार करना चाहता था। परन्तु, कुछ स्वास्थ्य खराब, कुछ अवकाशाभाव, अत: जो चाहता था वह तो न कर सका, फिर भी यत्र - तत्र कलम ने अपना कुछ काम किया ही है, और उसी परिष्कार को साथ लिए यह चतुर्थ संस्करण प्रस्तुत है। गाँधी जयंती २ अक्टूबर १६८७ --उपाध्याय अमरमनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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