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वों का स्थूल रूप से अनुपालन करना चाहिए। जो ग्यारह प्रतिमा को धारण कर बारिश का पालन करता है, वह वस्तुतः नैष्ठिक पावक कहलाता है और
१. (म) मद्य मासं क्षौद्र पंचोदुम्बरफलानि यत्नेन ।
हिंसा व्युपरतिः कामे क्तव्यानि प्रथममेव ।।
-पुरुषार्थसिनोपाय, अमृतचन्द्र सूरि, सैन्ट्रल जैन पब्लिशिंग हाउस, अजिताश्रम, लखनऊ, प्रथम संस्करण सन् १९३३, श्लोक संख्या ६१, पृष्ठ ३४ । बड़ का फल, पीपल का फल, ऊमर, कठूमर (गूलर) तथा पाकरफल ये पाँच उदुम्बर फल कहलाते हैं । मधु, मांस, मदिरा इन सभी का त्याग अष्टूमल गुण कहलाता है।
बालबोध पाठमाला, भाग ३, डा० हुकुमचन्द्र भारिल्ल, श्री टोडरमल स्मारक भवन, ए-४, बापू नगर, जयपुर-४,
पृष्ठ १२-१३। २. (अ) संयम अंश जग्यो जहाँ, भोग अरुचि परिणाम ।
उदै प्रतिग्या को भयो, प्रतिमा ताका नाम ॥
-सयमसार नाटक, बनारसीदास, चतुर्दशगुणस्थानाधिकार, छंद संख्या ५८, श्री दिन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट, सोनगढ़ (सौराष्ट्र),
प्रपम संस्करण वि० सं० २०२७, पृष्ठ ३८६ । (ब) दर्सन विसुटकारी बारह विरतधारी,
सामाइकचारी पर्वोषध विधि वहै । सचित को परहारी दिवा अपरस नारी,
आठो जाम ब्रह्मचारी निरारंभी ह वै रहै । पाप परिग्रह छंदे पाप कीन शिक्षा मंडे,
कोऊ याके मिमित कर सो वस्तु न गहै। ऐमे देसवत के घरया समकिती जीव,
ग्यारह प्रतिमा तिन्हें भगवंत जी कहै ॥ अर्थात् १. सम्यग्दर्शन में विशुद्धि उत्पन्न करने वाली दर्शन प्रतिमा अर्थात कक्षा या श्रेणी है । २. बारहवतों का आचरण व्रत प्रतिमा है। ३. सामायिक की प्रवृत्ति सामायिक प्रतिमा है । ४. पर्व में उपवास-विधि करना प्रोषध प्रतिमा है । ५. सचित त्याग सचितविरत प्रतिमा है । ६. दिन में स्त्री स्पर्श का त्याग दिवा मैथुन व्रत प्रतिमा है । ७. आठों पहर स्त्रीमात्र का त्याग ब्रह्मचर्य प्रतिमा है। ८. सर्व बारम्भ का त्याग निरारम्भ प्रतिमा है। १. पाप के कारणभूत परिग्रह का त्याग परिग्रह त्याग प्रतिमा है । १०. पाप की शिक्षा का त्याग अनुमति त्याग प्रतिमा है । ११. अपने बनाए हुए भोजनादि का त्याग उद्देश्य विनिमतिमा है।