Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 16
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 11
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-16/9 धृतिषेण झूठा कलंक पुरुष-पात्र परिचय महीपाल - वैजयन्ती नगरश्रेष्ठि सुखानन्द महीपाल के सुपुत्र आनन्दकुमार - राजगृह का राजकुमार देव स्वर्ग से आया हुआ मनोरमा का रक्षक देव धनदत्त काशी के श्रेष्ठि मनोरमा के मामा - वैजयन्ती के नरेश यशोधर वैजयन्ती के महामात्य मंगल-जम्बू - बालक धनदत्त के पौत्र (अन्य नागरिकगण) स्त्री-पात्र सुवृत्ता महीपाल की पत्नी सुखानन्द की माँ मनोरमा - महीपाल की पुत्रवधु सुखानन्द की पत्नी सुसीमा - सुवृत्ता की दासी .. - वैजयन्ती के राजकुमार की दासी (वैजयन्ती नगर के विश्रुत श्रेष्ठिपुत्र सुखानन्द का विवाह गुणवती सुशील कन्या मनोरमा से हुआ।) नवदम्पति ने प्रणयसूत्र में बंधकर कुछ दिन व्यतीत किये। उन्हें प्रेमलीला करते हुये समय का भान ही नहीं रहा। एक दिन अचानक सुखानन्द को सुधि आई कि मैं पूर्ण तरुण होकर भी पिता के द्वारा अर्जित की हुई सम्पत्ति का उपभोग कर रहा हूँ; यह मुझे शोभा नहीं देता। अस्तु ! अब मैं अपने पुरुषार्थ से धन-संचित करूंगा। रात्रि के समय जब स्वच्छ, नीले आकाश में चन्द्रदेव विहार कर रहे थे उस समय ये दम्पति प्रेमालाप में तन्मय हैं। इसी समय सुखानन्द उपर्युक्त निर्णय अपनी प्रेयसी मनोरमा को सुनाना चाहते हैं। दूती

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