Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 16
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 45
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-16/43 समय की नियति पात्रानुक्रमणिका महाराजा दशरथ कौशल्या, कैकेयी, सुमित्रा, सुप्रभा रामचंद्र, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न सीता मंथरा एवं मालिन अयोध्या के शासक महाराजा दशरथ की पत्नियाँ महाराजा दशरथ के पुत्र रामचंद्र की पत्नी दासी दृश्य-प्रथम स्थान - अयोध्यानगरी के राजमहल का एक कक्ष समय - प्रातः काल प्रथम प्रहर (महारानी कैकेयी श्रृंगार में व्यस्त हैं । इतने में वृद्धा मालिन आती है। वह माला की डलिया लेकर आई है। कैकेयी प्रसन्न मुद्रा में है ) मालिन – जय हो महारानीजी की। कैकेयी - आ गईं मालिन माँ ! बस तुम्हारी ही राह देख रही थी। मालिन - बस स्नान कर सीधी ही चली आ रही हूँ। वह आपकी वधू हैन ! बड़ी सुघड़ बनती है। कैकेयी - (हँसकर) सुघड़ तो है ही जुही ! जैसा उसका नाम है, वैसी है भी । सो हुआ क्या ? मालिन – कहने लगी आज के माला गजरे वेणी सब मैं ही गूँयूँगी । महारानी जी ! मुझे तो हाथ भी नहीं लगाने दिया। कहती थी, तुमसे बिगड़ जायेंगे। अब आप जानो महारानी जी ! मैं भला वृद्धा इन तितली सी वधुओं के श्रृंगार क्या जानूँ। कैकेयी - तो जुही ने गूँथे हैं । (बेणी आदि उठा-उठा कर देखती हैं) ओह ! बड़े सुन्दर हैं। उसकी सुरुचि प्रशंसनीय है मालिन माँ ! तुम्हारे घर की शोभा है जुही। बोलती है तो फूल झरते हैं।

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