Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 09
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 11
________________ तीर्थंकर भगवान महावीर ... वैशाली-कुण्डग्राम पावापुरा CLARAMAILY मंगल-वन्दना सुर-असुर-नरपतिवंद्य को, प्रविनष्ट घाती कर्म को। करता नमन मैं धर्मकर्ता, तीर्थ श्री महावीर को॥ जो सर्वज्ञ हैं, वीतरागी हैं, हितोपदेशी हैं और वर्तमान में जिनका धर्मतीर्थ चल रहा है - ऐसे असाधारण गुणवन्त तीर्थंकर भगवान महावीर को मैं वन्दन करता हूँ। - वे भगवान महावीर जिसका आराधन करके सर्वज्ञ हुए और जिसकी आराधना का भव्यजीवों को उपदेश दिया, ऐसे शुद्ध सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र को मैं नमस्कार करता हूँ और उसकी पूर्णता की भावना भाता हूँ। अहो ! ये रत्नत्रय मुमुक्षु के सर्व अर्थ को सिद्ध करनेवाले अमूल्य रत्न हैं। अहो ! आत्मतत्त्व का अद्भुतपन बतानेवाला तथा अनेकान्त धर्म के ध्वज से सुशोभित जिनशासन जयवन्त वर्तो....जो कि पर से भिन्न आत्मतत्त्व का अद्भुत स्वरूप बतलाकर इष्ट की सिद्धि करता है और मिथ्यादृष्टि जिसका पार नहीं पा सकते। - श्री महावीर प्रभु मंगलमय हैं।' ऋषभादि तेईस भगवन्त, सीमन्धरादि बीस विद्यमान भगवन्त और भूत-भविष्यत इत्यादि त्रिकालवर्ती सर्व अरहन्त, सिद्ध, पंचपरमेष्ठी, रत्नत्रय, जिनवाणी, राजगृही आदि सर्वतीर्थ – ये सब मंगल, एक 'मंगलमय महावीर' में समा जाते हैं; इसलिये महावीर प्रभु के मंगल गुणगान में

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