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जिन। मद,मोह,शोक,क्षुधा,तृषा इत्यादि जिनमें है नहीं,
सर्वज्ञ राग द्वेष वर्जित,सर्व शास्ता 'जिन' वही। दिखतीं चराचर वस्तुएं जिनके अलौकिक ज्ञानमें, रहते सुरासुर मग्न नित उनके सुखद गुणगानमें।
धर्म। जो प्राणियोंका दूर कर दुःख,सौख्य देता है अहा, धर्मको पुन. प्रकाशमें लाये इस वातको आज २४०० वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। बौद्ध धर्मकी स्थापनाके प्रथम जैन धर्मका प्रकाश फैल रहा था। यह बात विश्वास करने योग्य हैं। चौबीस तीर्थकरोंमें महावीर स्वामी अन्तिम तीर्थ कर थे, इससे भी जैन धर्मकी प्राचीनता जानी जाती है। बौद्ध धर्म पीछेसे हुआ यह वात निश्चित है।
(Mr T. W. Rhys Davids) मि. टि० डब्ल्यू रहिंस डेविड साने ( Rincyclopaedra Biuttanica Vol XXIX नामकी पुस्तकों लिखा है, "यह बात अब निश्चय है कि जैनमत घौद्धमतसे नि सन्देह बहुत पुराना है और बुद्ध के समकालीन महावीर अर्थात् वर्द्धमान द्वारा पुनः सजीवित हुआ है। और यह बात भी मले प्रकार निश्चय है कि जैन मतके मन्तव्य बहुत जरूरी और पौद्ध मतके मन्तव्योंसे विलकुल विरुद्ध हैं। ये दोनों मत न कि श्यमहीसे स्वाधीन हैं बल्कि एक दूसरेसे विलकुल निराले हैं।