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इस धर्मका धारक अधम मातंग १ भी पावन अहो, अपवित्र, धर्म विमुख मनुजयोगी भलेही क्यों न हो !
निष्पक्षता ।
सर्वज्ञ हो, निर्दोष हो, अविरुद्ध हो अनुपम गिरा, ये तीन गुण जिसमें प्रगर वह देव है, नहिं दूसरा | वह बुद्ध हो, श्रीकृष्ण हो या शम्भु हो श्रीराम हो,
बस भेदभाव विना उसेकर जोड़ नित्य प्रणाम हो । सर्वोच हैं सिद्धान्त सव निष्पक्षताकी दृष्टिमें, इतिहास के पन्ने उलटिये आप इसकी पुष्टिमें । यह हो चुका है सिद्ध जगमें जैन धर्म अनादि है, स्वीकार करते श्रेष्ठता जगर को न वाद विवाद है ।
१ सम्यग्दर्शन सम्पन्नमपि, मात देहजम् ।
देवा देवं विदुर्भस्म, गूढागारान्तरौजसम् । ( श्रीसमन्तभद्राचार्य )
२ भारतके प्रसिद्ध संस्कृतज्ञ विद्वान श्रीबालगंगाधर तिलककी सम्मति (देखो केसरी पत्र ता० १३ दिसम्बर १९०४ )
" ग्रन्थों तथा सामाजिक व्याख्यानोंसे जाना जाता है कि जैन धर्म अनादि है | यह विषय निर्विवाद तथा मतभेद रहित है । सुतरां इस विषयमें इतिहास के दृढ़ सबूत हैं और निदान ईस्वी सन्से ५२६ वर्ष पहलेका तो जैन धर्म सिद्ध है ही" "महावीर स्वामी जैन