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जिनके विपुल पाण्डित्यसे सब ही चकित होते हुये, हम उठ पड़े थे घोर निद्रासे अहो ! सोते हुये । सदसत्य कहने में उन्हें संसारका कुछ भय न था, निज धर्म हित वे भोग सकतेथे सभीभीषण व्यथा।
सौख्यलता (वस्तुपालकी धर्मपत्नी) ये देवियां ही तो लगाती थी प्रभूको पन्थमें,
इनकी अनेकों आज भी मिलती कथायें ग्रन्थमें । वह सुखलता जगमें हुई पतिके लिये सुखकी लता, जिसने सहज उद्धारका पथ था दिया पतिको बता। तलवार भी कुछ देवियां देखो ग्रहण करती रहीं, निज शत्रुओं के सिंहनी लस प्राण वे हरती रहीं। जिस ओर वे संग्राममें सोत्साह जाकरके लड़ी. उस ओर रणमें देखलो रिपु पक्षकी लाशें पड़ी।
. स्त्रियोंमें मूर्खताका प्रवेश। इन देवियों में मूर्खता उस काल जो आके जमी,
उनकी अविद्यामें सहायक सर्वदा भी थे हमीं। गृह-कार्यके कारण उन्हें मिलता नहीं अवकाश था, अतएव कुछ दिन विदुषियों कातोयहाँपर हास था।
ॐ भूतखण्ड समाप्त