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जगके पुरातन वेद भी अस्तित्व इसका मानते, इतिहास वेत्ता धर्मकी प्रचीनताको जानते । जो वौद्ध-मतसे जैनियोंकी मानते उत्पत्तिको, निष्पक्ष हो देखें तनिक इतिहासकी सम्पत्तिको ।
दरिद्रता।
क्यों हाय! इस दारिद्रने अव वासघर में किया ? प्रियप्राणियोंका प्राणधन हाचिस सवइसने लिया। आनन्दमें जो लीन थे वे आज फांके मस्त हैं, धनके बिना सबलोगहा! हा त्रस्त हैं अतिव्यस्त हैं।
अपने सदनकी हीनता भी हम न कह सकते कहीं,
दो-चार पैसे भी किसीसे मांग हम सकते नहीं। रूखा तथा सूखा यहां आहार जो कुछ पा लिया,
करते हृदय सन्ताप अधिकाधिक उसेही खा लिया। अमणोका मन्दिर बतलाया गया है। (दिगम्वरजैन वीर सम्वत् २४५६ अङ्क १, २)
जैनियोंमें एक कनक मुनि सन् ई० से २० वर्ष पहले हो गये हैं उनका शिखर बन्द सुन्दर मन्दिर डाक्टर फुहारने नेपालके हिमालयकी तटकी ओर निजलिवा प्राममें देखा है। (दिगम्बरजैन)